एक दौर में सत्ताधारी यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गनाइजेशन (यूएमएनओ) के उभरते हुए सितारे और फिर ऐसे विद्रोही सुधारक जिन्हें उनके पूर्व बॉस ने जेल में डाल दिया, अनवर इब्राहिम की कहानी सत्ता, विद्रोह, कैद और वापसी की कहानी है। अपने लंबे करियर के तमाम उतार-चढ़ाव में, श्री अनवर ने अपनी राजनीतिक मुहिम या अपने आंदोलन ‘रिफॉर्मसी’ (सुधार) पर भरोसा कभी नहीं छोड़ा। इसी यकीन ने आखिरकार उन्हें उस पद पर पहुंचा दिया जिसका उन्हें दो दशकों से ज्यादा समय से इंतजार था। पिछले हफ्ते हुए चुनाव में, उनके गठबंधन पाकत हरपन (पीएच, उम्मीदों का गठबंधन) को संसद में सबसे ज्यादा सीटें मिली। इसके बाद मलेशिया के सुल्तान ने 75-वर्षीय इस नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किया। 1990 के दशक में, तत्कालीन उप प्रधानमंत्री श्री अनवर को सर्व-शक्तिशाली प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। हालांकि, उनके आपसी मतभेद और यूएमएनओ एवं सरकार के भीतर सुधार के उनके आह्वान की वजह से उनके करियर का पतन होने लगा। उन्हें यौन दुराचार के आरोपों में जेल में डाल दिया गया। इस आरोप को वे हमेशा नकारते रहे। दो बार जेल काटने के बाद, श्री अनवर ने 2018 में डॉक्टर महातिर के साथ हाथ मिलाया और भष्टाचार व घोटालों से जूझ रही यूएनएमओ को सत्ता से बेदखल करने में कामयाब रहे। दोबारा प्रधानमंत्री बने डॉ. महातिर ने अनवर को माफ तो कर दिया, लेकिन उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी देने से इनकार कर दिया। इससे देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। लेकिन, इस बार श्री अनवर सभी कानूनी बाधाओं को पार कर चुके हैं और सत्ता के मामले में उनके सामने किसी ने कोई चुनौती नहीं पेश की।
हालांकि, इस चुनावी नतीजे ने मलेशिया में ध्रुवीकरण की राजनीति के उभार को भी रेखांकित किया है। पहली बार मलेशिया में चुनाव के नतीजों से त्रिशंकु संसद की स्थिति बनी है। भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारी की रक्षा का वादा करने वाले श्री अनवर के गुट (पीएच) को 222 सदस्यों वाली संसद में 82 सीटें मिली। पूर्व प्रधानमंत्री मुहीदीन यासिन की पेरिकतन नैशनल (पीएन) को 73 सीटें मिलीं, जबकि यूएनएमओ की वर्चस्व वाली प्रधानमंत्री इस्माइल साबरी याकूब की बरिसन नैशनल (बीएन) महज 30 सीटों पर सिमट गई। चुनाव नतीजों ने एक तरफ जहां यूएनएमओ के प्रति लोगों की बढ़ती नाराजगी को रेखांकित किया, वहीं
इसने मलेशियाई इस्लामिक पार्टी (पीएएस) के उदय को भी दिखाया, जो पेरिकतन गठबंधन का हिस्सा है। अपने दम पर 49 सीटें जीतने वाली पीएएस मलेशिया में इस्लामिक शासन और संविधान की धार्मिक व्याख्या चाहता है। शायद श्री अनवर के सामने सबसे बड़ी चुनौती मलेशियाई समाज का बढ़ता ध्रुवीकरण है। विपक्षी नेता के तौर पर उन्होंने समानता और अल्पसंख्यक अधिकारों की तरफदारी की और भ्रष्टाचार एवं भाई-भतीजावाद पर सवाल उठाया। प्रधानमंत्री के रूप में, अब उन्हें इन मसलों पर अमल करके दिखाना होगा। उन्हें ऐसा तब करना होगा जब उनकी सरकार संसद में बहुमत के लिए गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर होगी। यही नहीं, यह एक ऐसा समय है जब उनके प्रगतिशील एजेंडे के खिलाफ इस्लामवादी ताकतों की चुनौती बढ़ रही है। यह वाकई एक बड़ी चुनौती है।
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