एक खामोश राहत: पूर्व भारतीय नौसैनिकों पर कतर की अदालत का फैसला

भारत ने सुर्खियों से दूर रहकर कतर के साथ अपने माध्यमों का इस्तेमाल कर अच्छा किया

Published - December 30, 2023 09:57 am IST

आठ पूर्व भारतीय नौसैनिकों को अक्टूबर में दी गई मृत्युदंड की सजा को कम करने संबंधी कतर की अपीलीय अदालत का फैसला उन नौसैनिकों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ी राहत है। साथ ही, यह सरकार के लिए भी राहत भरी बात है जो सजा में नरमी के लिए राजनयिक माध्यमों का सहारा ले रही है। अदालत के ऐलान के 24 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी जहां विस्तृत फैसले की प्रतीक्षा की जा रही है, वहीं दोषसिद्धि को कायम रखा जाना निराशाजनक है। सरकार और नौसैनिकों के परिवारों को अब कतर के ‘कोर्ट ऑफ कैसेशन’, जो वहां की न्याय प्रणाली में उच्चतम अदालत है, में समीक्षा याचिका दायर करने से पहले अपनी कानूनी रणनीति और उनकी बेगुनाही के सबूतों का पुनर्मूल्यांकन करना चाहिए। अगर न्यायिक अपील के सभी रास्ते बंद हो जाते हैं, तो सरकार के पास तीन विकल्प होंगे। पहला, कतर के सत्तारूढ़ अमीर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी पर सजा की समीक्षा के लिए दबाव डालना जारी रखना। अगर यह तरीका विफल रहता है, तो नौसैनिक क्षमादान की अपील कर सकते हैं और माफी मांग सकते हैं, जो कतर के शासकों ने अतीत में दी है। सजा पाए व्यक्तियों के हस्तांतरण से संबंधित 2015 के द्विपक्षीय समझौते के मुताबिक, एक बार कारावास की अवधि स्पष्ट हो जाने के बाद, इन नौसैनिकों के लिए तीसरा विकल्प भारत में अपनी सजा पूरी करना होगा। हालांकि, इस विकल्प के लिए उन्हें यह स्वीकार करना होगा कि उनकी दोषसिद्धि को पलटा नहीं जा सकता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से, सरकार को उच्चतम स्तर पर राजनयिक और राजनीतिक प्रयास करते हुए दिखते रहना चाहिए ताकि यह बताया जा सके कि ये नौसैनिक भारत के लिए प्राथमिकता हैं।

महत्वपूर्ण है कि यह घटनाक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कतर के नेतृत्व के साथ पहली बार सार्वजनिक रूप से संपर्क साधने के बाद सामने आया है। मोदी ने 1 दिसंबर को कॉप28 के मौके पर कतर के अमीर से मुलाकात की थी। अगस्त 2022 में इन नौसैनिकों की गिरफ्तारी के बाद, यह सवाल अब बेमानी है कि इस किस्म का राजनीतिक संपर्क या दोहा के लिए एक उच्च-स्तरीय मिशन का कदम पहले ज्यादा फायदेमंद होता। यह वाकई काबिलेतारीफ है कि नई दिल्ली ने, कनाडा के आरोपों पर अपनाए गए रवैये के उलट, इस मसले पर कोई सार्वजनिक बयानबाजी नहीं करने का फैसला किया है। खासतौर पर मीडिया के कुछ हिस्से में दोहा को जिस तरह से निशाना बनाया गया है, वह एक प्रतिकूल कदम साबित होता। अगर इन नौसैनिकों को फंसाने वाला मामला किसी भी तरह से भारत की खुफिया सेवाओं से जुड़ा है, तो ऐसे किसी भी ऑपरेशन की उचित समीक्षा पर विचार करना महत्वपूर्ण होगा जो विदेशों में भारतीयों को खतरे में डाल सकता हो। नई दिल्ली ने इस मामले को इजराइल द्वारा गाजा पर जारी बमबारी को लेकर क्षेत्र में बढ़ते तनाव से प्रभावित नहीं होने देकर भी अच्छा काम किया है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि लगातार संतुलित रवैये व कतर की संवेदनशीलता का ध्यान रखते हुए, एक शांत लेकिन दृढ़ प्रयास के जरिए आठ भारतीयों को सुरक्षित घर वापस लाया जाएगा।

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