मिजोरम में राजनीतिक दलों को मिले मतों के अनुपात पर एक सरसरी नजर डालने से पता चलता है कि एक खंडित जनादेश के चलते जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) 40 में से 27 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल करने में सफल रहा - विजेता जेडपीएम को 37.9 फीसदी, सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को 35.1 फीसदी, कांग्रेस को 20.8 फीसदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 5.1 फीसदी मत मिले। फिर भी, यह एक सीमित व्याख्या ही होगी, क्योंकि इस क्षेत्रीय दल ने राज्य में 36 साल से चल रहे दो दलों के एकाधिकार (जहां सत्ता या तो एमएनएफ या फिर कांग्रेस के पास रहती थी) को भी तोड़ दिया। एमएनएफ को हराना भी आसान नहीं था, क्योंकि जोरामथंगा के नेतृत्व वाले इस दल ने मणिपुर में कुकी-जो आदिवासियों और पड़ोसी देश म्यांमार में चिन लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करके पूरे जतन से जातीय राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने की कोशिश की थी। कुकी-जो और चिन - ये दोनों अलग-अलग संघर्षों में फंसे हुए हैं। इधर कांग्रेस ने इस ईसाई बहुल राज्य में यह प्रचार करके मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया कि ये क्षेत्रीय दल हिंदुत्व को बढ़ावा देनेवाली भाजपा के संभावित सहयोगी हैं, खासकर एमएनएफ जो भाजपा-नीत नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का हिस्सा है। मतदाताओं के एक बड़े हिस्से (भारत के दूसरे सबसे कम आबादी वाले राज्य में 8.6 लाख पंजीकृत मतदाताओं में से एक-तिहाई से ज्यादा) ने जातीय राष्ट्रवाद की राजनीति या समुदायवादी अपीलों से परे देखने की कोशिश की और जेडपीएम को समर्थन प्रदान किया। यह बताता है कि जेडपीएम के भ्रष्टाचार-मुक्त शासन के आह्वान और युवाओं के हितों के साथ सुशासन के एजेंडे को निर्णायक संख्या में लोगों ने हाथोहाथ लिया।
जेडपीएम खुद को बदलाव की एक ताकत के बतौर पेश कर पाने में कामयाब रहा। उसे मिजोरम की सिविल सोसाइटी के लोकप्रिय सदस्यों का समर्थन मिला और कुछ तो उसके उम्मीदवार भी बने। इसने पूर्व आईपीएस अधिकारी और भावी मुख्यमंत्री माने जा रहे लालदुहोमा की अगुवाई वाले दल को निर्णायक मजबूती प्रदान की। चूंकि जेडपीएम खुद के दम पर सत्ता में आ रहा है, उसके लिए अपने आंदोलन-नुमा आदर्शों के प्रति ईमानदार रह पाना आसान होगा। लेकिन, दो सीटें जीतनेवाली भाजपा की ओर से उसे यह प्रस्ताव मिलेगा कि वह भाजपा को भी गठबंधन में शामिल कर ले। केंद्र सरकार के साथ राज्य का रिश्ता बेहतर करने की कोशिश करते हुए भी जेडपीएम को साफ-सुथरे और स्वतंत्र शासन-संचालन के अपने लक्ष्यों को हासिल करना होगा।
इसके लिए उसे एक नाजुक संतुलन बनाना होगा। छोटे राज्यों, खासकर जो पूर्वोत्तर में हैं, के पास संसाधन जुटाने के बहुत सीमित रास्ते हैं और वे अपनी वित्तीय जरूरतों के लिए केंद्र सरकार पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं। मसलन, मिजोरम देश के उन राज्यों में शामिल है जिनकी राजस्व प्राप्तियों में केंद्रीय अंतरण (यूनियन ट्रांसफर) सर्वाधिक (85.7 फीसदी) है। अगर जेडपीएम राज्य की आबादी की उच्च साक्षरता दर और शिक्षा का फायदा उठाकर, अर्थव्यवस्था का कृषि के अलावा, पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन और मूल्य-संवर्धित सेवाओं जैसे क्षेत्रों में विविधीकरण कर सके, तो वह राज्य में निर्णायक बदलाव के अपने वादे पर खरा उतर सकता है।
Published - December 05, 2023 11:49 am IST