एक चेहरे की मौत: अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी के खात्मे पर 

जवाहिरी की हत्या दोहा समझौते के निहितार्थ के लिए ज्यादा अहम है 

Updated - August 15, 2022 11:52 am IST

काबुल के सेफ़ हाउस में अमेरिकी ड्रोन से अल-कायदा नेता अयमान अल-जवाहिरी की हत्या, सुन्नी इस्लामी आतंकवादी संगठन के लिए एक स्पष्ट झटका है। मिस्र का रहने वाला जवाहिरी डॉक्टर से आतंकवाद का सरगना बना और 2011 में अल कायदा के पूर्व सरगना ओसामा बिन लादेन की अमेरिकी कमांडो की छापेमारी में पाकिस्तान के एबटाबाद में हुई हत्या के बाद वह इस संगठन का कमान संभाल रहा था। अगस्त 1998 में पूर्वी अफ्रीका में अमेरिकी दूतावास पर बम धमाकों से लेकर 11 सितंबर 2001 तक, अल-कायदा के ज्यादातर बड़े हमलों में जवाहिरी की अहम भूमिका थी। मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़े मौलवी सैय्यद कुतुब- जिन्हें राष्ट्रपति जमाल अब्दुल नासिर की सरकार में फांसी दे दी गई थी- की तकरीरों से प्रेरित होकर, जवाहिरी ने किशोरावस्था में ही एक भूमिगत इस्लामी संगठन की स्थापना की। बाद में, उसने खतरनाक इजिप्टियन इस्लामिक जिहाद की अगुवाई की, जिसका 9/11 के हमलों से कुछ महीने पहले अल-कायदा में विलय हो गया था। तब से वह अल-कायदा में नंबर दो की भूमिका में था। बिन लादेन की मौत के बाद वह इस संगठन का सिरमौर बन गया। माना जाता है कि अपने पिछले बॉस की तरह ही वह भी पाकिस्तान में छिपा हुआ था, लेकिन अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि जवाहिरी इस साल की शुरुआत में शायद इस उम्मीद में वापस अफगानिस्तान चला गया कि तालिबान के कब्जे वाले मुल्क में वह ज्यादा सुरक्षित रहेगा। हालांकि, पनाह लेने का यह उसका आखिरी ठिकाना साबित हुआ।

यह हत्या आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बाइडेन सरकार के लिए युद्ध क्षेत्र से जुड़ी एक विरल जीत है। इससे इस सरकार का यह दावा भी पुष्ट हुआ है कि वह अफगानिस्तान जैसे देशों में सैनिकों को तैनात किए बिना “पूरी दुनिया में” (ओवर द होराइज़न) सैन्य अभियान जारी रख सकता है। अमेरिकी खुफिया अधिकारियों ने हमले से पहले जवाहिरी की शिनाख्त की पुष्टि करने और दिनचर्या का ढर्रा जानने के लिए महीनों तक काम किया। लेकिन, यह हमला कई सवाल भी खड़ा करता है। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी, ट्रंप सरकार और तालिबान के बीच हुए दोहे समझौते पर आधारित थी, जिसे बाद में बाइडेन सरकार ने भी मंजूरी दी। समझौते के तहत, तालिबान ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बदले इस्लामिक स्टेट और अल-कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ हर तरह के संबंध खत्म करने का वादा किया था। तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के 16 दिन बाद, 31 अगस्त को अमेरिका ने सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया पूरी कर ली। इस्लामिक स्टेट से तो तालिबान लड़ रहा है, लेकिन अल-कायदा के साथ उसके संबंध रहस्यमय बने हुए हैं। मौजूदा तालिबान सरकार में गृह मंत्री और हक्कानी गुट के नेता सिराजुद्दीन हक्कानी को अल-कायदा के साथ करीबी संबंध के लिए जाना जाता है। अल-कायदा और तालिबान के इतिहास को देखते हुए, इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि जवाहिरी काबुल के ऐसे धनी इलाके में रह रहा था जहां तालिबान के कई रसूखदार नेता, टेक्नोक्रेट और पूर्व कबीलाई सरदार रहते हैं और इस बात की खबर तालिबान नेतृत्व को न हो। यह कहा नहीं जा सकता कि जवाहिरी की हत्या, सांगठिक तौर पर नेतृत्व और जिम्मेदारी के स्पष्ट बंटवारे के बिना चल रहे बिखरे हुए अल-कायदा को कमजोर करेगी या नहीं। लेकिन, अमेरिका और अन्य देशों के सामने एक बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि तालिबान सरकार अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों को फिर से संगठित होने में मदद न करे। यही दोहा समझौते की भावना है। 

This editorial in Hindi has been translated from English which can be read here.

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