पांच महीनों में पहली बार, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति मार्च महीने में पांच फीसदी के निशान से नीचे गिरकर 4.85 फीसदी पर आ गई। जहां फरवरी में दर्ज की गई 5.1 फीसदी के मुकाबले इसमें सिर्फ मामूली ही कमी आई, वहीं यह मई 2023 के बाद से दर्ज की गई महंगाई की सबसे कम रफ्तार थी। वित्तीय वर्ष 2023-24 की अंतिम तिमाही में पांच फीसदी की औसत मुद्रास्फीति न सिर्फ भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुमानों के अनुरूप है, बल्कि तीन वर्षों में सबसे धीमी भी है। पिछले पूरे साल के दौरान, आरबीआई द्वारा लगाये गये अनुमान के मुताबिक ही उपभोक्ता मूल्य वृद्धि औसतन 5.4 फीसदी रही। यह मूल्य वृद्धि चार साल में सबसे कम थी। ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की कीमतों को छोड़कर, कोर मुद्रास्फीति लगातार चार महीनों से चार फीसदी के नीचे ही रही है। क्वांटईको रिसर्च का अनुमान है कि भारत में समग्र ईंधन मुद्रास्फीति मार्च में चार साल के निचले स्तर -2.7 फीसदी पर पहुंच गई, जो इस खंड में अवस्फीति का लगातार सातवां महीना था। इसमें कोई शक नहीं कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में दो रुपये प्रति लीटर की कटौती और सिलेंडर की कीमतों में 100 रुपये की गिरावट से मदद मिली है, हालांकि चुनाव से पहले उठाये गये इन कदमों का पूरा असर इस महीने दिखाई देगा। इन सुखद संकेतों के बीच, दो गंभीर समस्याएं बनी हुई हैं। खाद्य पदार्थों के खर्च समस्यात्मक रूप से ऊंचे बने हुए हैं और पहले से ही कमजोर मानसून से प्रभावित ग्रामीण उपभोक्ताओं के लिए समग्र मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक द्वारा मापी जाने वाली मुद्रास्फीति, 2023-24 के दौरान औसतन आठ फीसदी और जनवरी से मार्च वाली तिमाही में 8.5 फीसदी रही है। अब जबकि कुछ सरकारी हस्तक्षेपों ने कुछ वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने में मदद की है तथा इस साल सामान्य मानसून की उम्मीद से दबाव के कुछ बिंदुओं से राहत मिल सकती है, देश के बड़े हिस्सों में चल रही गर्मी की लहरें शायद जुलाई के बाद से जल्द खराब होने वाली वस्तुओं की आपूर्ति के लिए खतरा बन सकती हैं। इसके अलावा, कुछ प्रमुख वस्तुओं में मुद्रास्फीति की जड़ें काफी गहरी हैं - सब्जियों में पांच महीने, दालों में 10 महीने और मसालों में 22 महीने से दहाई अंकों वाली मुद्रास्फीति देखी गई है। अनाज की मुद्रास्फीति ने जहां मार्च में रफ्तार पकड़ी और सात महीने की नरमी का सिलसिला तोड़ दिया, वहीं अंडे, मांस एवं मछली की कीमतों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। आरबीआई को जहां इस साल मुद्रास्फीति घटकर 4.5 फीसदी तक रहने की उम्मीद है, वहीं पहली तिमाही में यह 4.9 फीसदी रहने का अनुमान है। मुद्रास्फीति के निरंतर घटकर चार फीसदी तक आने का लक्ष्य, जोकि पिछले 54 महीनों से पकड़ से बाहर है, मुश्किल बनी हुई है। शहरी उपभोक्ताओं के लिए मुद्रास्फीति मार्च में घटकर लक्ष्य के करीब 4.14 फीसदी तक तो आ गई, लेकिन ग्रामीण भारत में यह जनवरी और फरवरी में 5.34 फीसदी से बढ़कर 5.45 फीसदी हो गई। ऊंची कीमतों का लंबा दौर जहां पहले से ही उपभोग को नुकसान पहुंचा रहा है, वहीं इस महीने कच्चे तेल की कीमतों के सात महीने के उच्चतम स्तर 90 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच जाने के चलते संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूरोपीय संघ में ब्याज दरों में कटौती की उम्मीदों का लड़खड़ाना और संघर्ष-प्रभावित शिपिंग लागत में बढ़ोतरी आने वाले महीनों में मुद्रास्फीति के मोर्चे पर नई चिंताएं पैदा कर रहीं हैं।