सन् 1970 में ब्रिटेन से आजादी हासिल करने के बाद से, दक्षिणी प्रशांत महासागर के छोटे-से द्वीपसमूह फिजी ने कई बार तख्तापलट देखा है। अब एक बार फिर यह, सत्ता संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता के एक नए दौर से गुजर रहा है। बीते 14 दिसंबर के आम चुनाव के बाद इस ताजे संकट की शरुआत हुई। प्रधानमंत्री फ्रैंक बैनिमारामा की सत्तारूढ़ फिजी फर्स्ट पार्टी ने 55 सदस्यों वाली संसद में 26 सीटों पर जीत हासिल की, जो बहुमत से तीन सीटें कम हैं। पूर्व प्रधानमंत्री और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष सित्विनी राबुका की पीपुल्स अलायंस, 21 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2006 में तख्तापलट करके सत्ता में आए श्री बैनिमारामा ने 2013 में पेश किए गए नए संविधान के जरिए, खुद को एक लोकतांत्रिक नेता के रूप में पेश किया। असहमतियों को दबाने और विपक्ष पर नकेल कसने के आरोपों में उनकी आलोचना होती रही है। इस चुनाव में भी धोखाधड़ी के आरोप लगे। हालांकि, जब नतीजे जाहिर हुए, तो तीन विपक्षी दलों ने श्री बैनिमारामा को हटाने और गठबंधन सरकार बनाने के लिए हाथ मिला लिए। पीपुल्स एलायंस और उसके गठबंधन की सहयोगी नेशनल फेडरेशन पार्टी (जिसने पांच सीटें जीती) के पास कुल 26 सांसदों का समर्थन है। इससे तीसरा गुट, यानी तीन सीटें जीतने वाली सोशल डेमोक्रेटिक लिबरल पार्टी किंगमेकर की भूमिका में आ गई। पार्टी ने मंगलवार को अंदरूनी वोट से यह फैसला लिया कि वह श्री राबुका का समर्थन करेगी। इससे सत्ता का संतुलन पीपुल्स अलायंस के पक्ष में झुक गया।
श्री राबुका, पहली बार 1987 में एक तख्तापलट के जरिए सत्ता में आए थे और फिर उन्होंने चुनावों का सामना किया। वे एक अनुभवी राजनेता हैं जिन्होंने श्री बैनिमारामा के शासन के प्रति सामूहिक नाराजगी के आधार पर विपक्षी दलों की एकता कायम की। श्री बैनिमारामा वैश्विक मंच पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई के एक प्रमुख हिमायती के रूप में उभरे हैं। उनकी सरकार में फिजी का चीन के साथ रिश्ता गहराया है, जो दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी तेजी से बढ़ाने में जुटा है। फिजी फर्स्ट अभी भी एक मजबूत पार्टी बनी हुई है, लेकिन एकजुट
विपक्ष ने बाजी मार ली। प्रधानमंत्री ने अभी तक इस हकीकत को स्वीकार नहीं किया है। विपक्ष ने जब गठबंधन के समझौते का ऐलान किया, तो सरकार ने सेना बुला ली। अधिकारियों का कहना है कि जातीय हिंसा की घटनाएं हुई हैं (स्वदेशी फिजियन और भारतीय मूल के लोगों के बीच)। फिजी में जातीय संघर्षों का पुराना इतिहास रहा है, लेकिन विपक्ष का कहना है कि कानून-व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है और श्री बैनिमारामा सत्ता पर बने रहने के लिए पैंतरे आजमा रहे हैं। चुनाव परिणामों की अवहेलना करने की कोई भी कोशिश, देश में आंतरिक अशांति पैदा करेगी, इससे जातीय संतुलन बिगड़ेगा और विदेश नीति के एजेंडे में मुश्किलें पैदा होंगी। श्री बैनिमारामा को चुनाव नतीजे को स्वीकार करना चाहिए और सम्मानपूर्वक प्रधानमंत्री का पद छोड़ देना चाहिए और देश के राजनीतिक हलके में सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की एक मजबूत मिसाल कायम करनी चाहिए।
This editorial has been translated from English, which can be read here.