प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी करने के लिए रायपुर जाने वाले विमान से उतारे जाने के बाद कांग्रेस नेता और उसके मीडिया एवं प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा की संक्षिप्त गिरफ्तारी इस बात का एक और उदाहरण है कि कैसे राजनीतिक हिसाब-किताब चुकाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है। उनके वकील भले ही सुप्रीम कोर्ट से एक आदेश हासिल करने में कामयाब रहे जिसने उनकी अंतरिम जमानत सुनिश्चित की, लेकिन यह प्रकरण राजनीतिक आदेश के तहत गिरफ्तार करने की ताकत के दुरुपयोग पर प्रकाश डालता है। किसी टिप्पणी को अपमानजनक या आहत करने वाला बताना एक बात है, लेकिन उसे राष्ट्रीय एकता के खिलाफ, धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला या समाज में शत्रुता पैदा करने वाला मानना अलग बात है। कथित तौर पर आहत हुए किसी व्यक्ति की शिकायत के आधार पर किसी और राज्य की पुलिस द्वारा बाकायदे यात्रा कर के आना और अनुचित रूप से गिरफ्तारी करना सत्ता का घोर दुरुपयोग है। असम पुलिस ने अप्रैल 2022 में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को ट्विटर पर मोदी को ‘गोडसे का पुजारी‘ कहने के लिए गिरफ्तार किया था और उन्हें असम की एक अदालत के समक्ष पेश किया था। बिलकुल उसी तर्ज पर उसने खेड़ा के खिलाफ भी कार्रवाई को दोहराने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने उसे विफल कर दिया। यह चिंताजनक है कि भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में पुलिस उन घटनाओं से संबंधित शिकायतों पर कार्रवाई करती है जिनका उनके अधिकार क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है, सिवाय इसके कि ऐसी घटनाएं किसी और जगह की तरह ही उन क्षेत्रों में भी ख़बर के तौर पर रिपोर्ट की जाती हैं, जो कि एक परिस्थितिगत संयोग है।
जब पार्टी प्रवक्ता मीडिया से बात करते हैं तो राजनीतिक नेताओं के खिलाफ अनुचित आक्षेप असामान्य चीज नहीं है। हो सकता है कि खेड़ा ने प्रधानमंत्री के मध्य नाम के रूप में ‘गौतमदास‘ का उपयोग कर के मोदी के समर्थकों की कमजोर नस को छू दिया हो, जिन्होंने इसमें उद्योगपति गौतम अदाणी के साथ उनकी निकटता के आरोपों का एक संदर्भ देख लिया, हालांकि खेड़ा ने अपनी इस टिप्पणी के लिए माफी मांग ली थी। पुलिस अक्सर सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ की गई कठोर और अप्रिय टिप्पणियों के लिए मामले दर्ज करती है। ऐसे मामलों में हालांकि किसी को गिरफ्तार करने की जरूरत सवालों के घेरे में है। खेड़ा की ही तरह ज्यादातर मामलों में ये टिप्पणियां शायद ही कभी एफआइआर में गंभीर अपराधों की श्रेणी में शामिल होती हैं। दुर्भावनापूर्ण या धमकी भरे भाषण के लिए गिरफ्तारी की जरूरत हो सकती है, लेकिन सिर्फ कठोर आलोचना या बेस्वाद टिप्पणियों के मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए। घटना से इतर दूसरे न्यायाधिकार क्षेत्रों में एकाधिक एफआइआर करवाना और इसमें शामिल लोगों को गिरफ्तार करना कई राज्य सरकारों के लिए अब चलन बन चुका है। इस विवाद में अकसर यह तथ्य भुला दिया जाता है कि सात साल से कम की कैद की सजा वाले आरोपों में गिरफ्तारी करना कानून का उल्लंघन है। इस तरह के भीषण उल्लंघन तब तक जारी रहेंगे जब तक कि अदालतें पक्षपातपूर्ण कार्रवाई के लिए शामिल पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों को पकड़ने के बजाय अपनी भूमिका को सिर्फ जमानत देने या एफआइआर को एक साथ ‘क्लब’ करने तक सीमित रखेंगी।
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Published - February 27, 2023 11:34 am IST