/>

सियासी हिसाब चुकता करनाः कांग्रेस नेता पवन खेड़ा की गिरफ्तारी का मामला

खेड़ा की गिरफ्तारी दिखाती है कि पक्षपातपूर्ण पुलिस कार्रवाई स्वतंत्रता के लिए एक गंभीर खतरा है

Published - February 27, 2023 11:34 am IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कथित तौर पर अभद्र टिप्पणी करने के लिए रायपुर जाने वाले विमान से उतारे जाने के बाद कांग्रेस नेता और उसके मीडिया एवं प्रचार विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा की संक्षिप्त गिरफ्तारी इस बात का एक और उदाहरण है कि कैसे राजनीतिक हिसाब-किताब चुकाने के लिए कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है। उनके वकील भले ही सुप्रीम कोर्ट से एक आदेश हासिल करने में कामयाब रहे जिसने उनकी अंतरिम जमानत सुनिश्चित की, लेकिन यह प्रकरण राजनीतिक आदेश के तहत गिरफ्तार करने की ताकत के दुरुपयोग पर प्रकाश डालता है। किसी टिप्पणी को अपमानजनक या आहत करने वाला बताना एक बात है, लेकिन उसे राष्ट्रीय एकता के खिलाफ, धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला या समाज में शत्रुता पैदा करने वाला मानना अलग बात है। कथित तौर पर आहत हुए किसी व्‍यक्ति की शिकायत के आधार पर किसी और राज्य की पुलिस द्वारा बाकायदे यात्रा कर के आना और अनुचित रूप से गिरफ्तारी करना सत्ता का घोर दुरुपयोग है। असम पुलिस ने अप्रैल 2022 में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को ट्विटर पर मोदी को ‘गोडसे का पुजारी‘ कहने के लिए गिरफ्तार किया था और उन्हें असम की एक अदालत के समक्ष पेश किया था। बिलकुल उसी तर्ज पर उसने खेड़ा के खिलाफ भी कार्रवाई को दोहराने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने उसे विफल कर दिया। यह चिंताजनक है कि भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में पुलिस उन घटनाओं से संबंधित शिकायतों पर कार्रवाई करती है जिनका उनके अधिकार क्षेत्र से कोई लेना-देना नहीं है, सिवाय इसके कि ऐसी घटनाएं किसी और जगह की तरह ही उन क्षेत्रों में भी ख़बर के तौर पर रिपोर्ट की जाती हैं, जो कि एक परिस्थितिगत संयोग है। 

जब पार्टी प्रवक्ता मीडिया से बात करते हैं तो राजनीतिक नेताओं के खिलाफ अनुचित आक्षेप असामान्य चीज नहीं है। हो सकता है कि खेड़ा ने प्रधानमंत्री के मध्य नाम के रूप में ‘गौतमदास‘ का उपयोग कर के मोदी के समर्थकों की कमजोर नस को छू दिया हो, जिन्होंने इसमें उद्योगपति गौतम अदाणी के साथ उनकी निकटता के आरोपों का एक संदर्भ देख लिया, हालांकि खेड़ा ने अपनी इस टिप्पणी के लिए माफी मांग ली थी। पुलिस अक्सर सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ की गई कठोर और अप्रिय टिप्पणियों के लिए मामले दर्ज करती है। ऐसे मामलों में हालांकि किसी को गिरफ्तार करने की जरूरत सवालों के घेरे में है। खेड़ा की ही तरह ज्यादातर मामलों में ये टिप्पणियां शायद ही कभी एफआइआर में गंभीर अपराधों की श्रेणी में शामिल होती हैं। दुर्भावनापूर्ण या धमकी भरे भाषण के लिए गिरफ्तारी की जरूरत हो सकती है, लेकिन सिर्फ कठोर आलोचना या बेस्वाद टिप्पणियों के मामले में ऐसा नहीं होना चाहिए। घटना से इतर दूसरे न्‍यायाधिकार क्षेत्रों में ए‍काधिक एफआइआर करवाना और इसमें शामिल लोगों को गिरफ्तार करना कई राज्य सरकारों के लिए अब चलन बन चुका है। इस विवाद में अकसर यह तथ्य भुला दिया जाता है कि सात साल से कम की कैद की सजा वाले आरोपों में गिरफ्तारी करना कानून का उल्लंघन है। इस तरह के भीषण उल्लंघन तब तक जारी रहेंगे जब तक कि अदालतें पक्षपातपूर्ण कार्रवाई के लिए शामिल पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों को पकड़ने के बजाय अपनी भूमिका को सिर्फ जमानत देने या एफआइआर को एक साथ ‘क्‍लब’ करने तक सीमित रखेंगी।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

0 / 0
Sign in to unlock member-only benefits!
  • Access 10 free stories every month
  • Save stories to read later
  • Access to comment on every story
  • Sign-up/manage your newsletter subscriptions with a single click
  • Get notified by email for early access to discounts & offers on our products
Sign in

Comments

Comments have to be in English, and in full sentences. They cannot be abusive or personal. Please abide by our community guidelines for posting your comments.

We have migrated to a new commenting platform. If you are already a registered user of The Hindu and logged in, you may continue to engage with our articles. If you do not have an account please register and login to post comments. Users can access their older comments by logging into their accounts on Vuukle.