ADVERTISEMENT

सड़क पर आतंक का तांडवः जम्मू में रक्षा बलों पर हमले

Published - April 22, 2023 10:38 am IST

भारत को अपनी कश्मीर नीति और पाकिस्तान के प्रति अपने रुख पर पुनर्विचार करना चाहिए

जम्मू-कश्मीर में एक और हिंसक घटना के तहत, जम्मू संभाग में नियंत्रण रेखा (एलओसी) से सटे राजौरी-पुंछ सेक्टर में 20 अप्रैल को हुए एक आतंकी हमले में पांच सैनिक मारे गए, जबकि एक गंभीर रूप से घायल है। शुरुआती रिपोर्ट के मुताबिक, आतंकवादियों ने खराब मौसम की ओट लेकर सेना के एक वाहन पर हमला किया, जो राजौरी सेक्टर में भीम्बर गली-पुंछ के बीच उग्रवाद-विरोधी गश्त पर था। अब तक न तो हमलावरों की संख्या का पता चला है और न ही इस बात का कि वे किस संगठन से ताल्लुक रखते थे। यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब जम्मू-कश्मीर, मई महीने में ‘जी-20 टूरिज्म वर्किंग ग्रुप’ की बैठक की मेजबानी की तैयारियों में जुटा है। इससे अलग, अगले महीने गोवा में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी के हिस्सा लेने की संभावना जताई जा रही है। इससे उम्मीद जगी है कि भारत-पाकिस्तान के रिश्ते के नए सिरे से बहाल हो। ताजा हमले ने संवेदनशील इलाकों में गश्त के तौर-तरीकों पर कई सवाल उठाए हैं। यह वह इलाका है जहां बीते दिनों उग्रवादी हिंसा में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली है। इनमें, इस साल 1 जनवरी को यहीं के एक गांव में हुआ आतंकी हमला भी शामिल है जिसमें सात लोगों की मौत हो गई थी। तथ्य यह है कि सेना के वाहन के आगे साथ में कोई दूसरी गाड़ी नहीं चल रही थी और हमले के तुरंत बाद भी वहां मदद के लिए कोई नहीं पहुंचा। यह गंभीर चिंता का विषय है।

सेना के वाहन में लगी आग और जले हुए शवों की तस्वीरों ने 2019 में हुए पुलवामा हमले की याद ताजा कर दी। उस साल 14 फरवरी को केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को लादे बसों का काफिला, जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर चल रहा था। पुलवामा के लेथपोरा इलाके में विस्फोटकों से भरी कार में सवार एक आत्मघाती हमलावर, सुरक्षा में सेंध लगाने में कामयाब रहा। उस हमले में चालीस जवानों को जान गंवानी पड़ी और इस घटना ने राजनीतिक वर्ग, सैन्य प्रतिष्ठान और पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने जैश-ए-मोहम्मद को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया और भारत ने नियंत्रण रेखा को पारकर पाकिस्तान के बालाकोट में जैश के प्रशिक्षण शिविरों पर हमला करने के लिए अपने लड़ाकू जेट भेजे। इस हमले में कई हताहत हुए और आतंकी ढांचा तबाह हो गया। सीमा पार आतंकवाद के प्रति भारत की कड़ी प्रतिक्रिया को पूरी दुनिया ने देखा और इसके ठीक बाद लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान यह एक चुनावी मुद्दा बन गया। हालांकि, पाकिस्तान की जमीन से निकलने वाले आतंकवादियों की तादाद कम नहीं हुई है। यह बीते तीन साल, यानी भारत सरकार द्वारा 5 अगस्त 2019 को इस प्रदेश की अर्ध-स्वायत्तता के दर्जे को खत्म करने के बाद से जम्मू-कश्मीर में बढ़ती हिंसा से भी स्पष्ट हो रहा है। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा हाल ही में दिए गए साक्षात्कारों में इस विषय पर जिस तरह के दावे किए गए हैं, उनसे देश में आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीतिक वर्ग की मंशा पर नए सवाल उठते हैं। शायद यह सही समय है जब भारत को कश्मीर में अपनी नीति की समीक्षा करनी चाहिए। साथ ही, पाकिस्तान के साथ बंद पड़ी बातचीत पर भी विचार करना चाहिए।

This is a Premium article available exclusively to our subscribers. To read 250+ such premium articles every month
You have exhausted your free article limit.
Please support quality journalism.
You have exhausted your free article limit.
Please support quality journalism.
The Hindu operates by its editorial values to provide you quality journalism.
This is your last free article.

Most Popular

ADVERTISEMENT

ADVERTISEMENT