केन्द्र या राज्यों के बजट जितना आगामी वित्तीय वर्ष के लिए राजस्व और व्यय के विवरण होते हैं, उतना ही वे राजनीतिक अर्थव्यवस्था की एक कवायद भी होते हैं। हाल ही में वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए पेश किया गया केंद्रीय बजट भी इससे कुछ अलग नहीं है। कृषि क्षेत्र के लिए प्रावधानों और रोजगार को बढ़ावा देने के प्रयासों से शुरू करके “नौ प्राथमिकताओं” के अलावा, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आंध्र प्रदेश और बिहार के लिए किए गए विशेष प्रावधानों पर कुछ विस्तार से चर्चा की। इन दोनों राज्यों का नेतृत्व 2024 के आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद उसे महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान करने वाली पार्टियों द्वारा किया जा रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल (यूनाइटेड) और आंध्र प्रदेश के उनके समकक्ष एन. चंद्रबाबू नायडू की अध्यक्षता वाली तेलुगु देशम पार्टी अतीत में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के संयोजकत्व से जुड़ी रहीं पार्टियां हैं। ये वो पार्टियां भी हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कथित गैर-धर्मनिरपेक्षवादी साख से लेकर बढ़ी हुई केंद्रीय सहायता की मांगों की अनदेखी जैसे मुद्दों पर भाजपा के साथ लंबे समय से चले आ रहे रिश्तों को तोड़ लिया था। बिहार को अब लगभग 59,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ सबसे बड़ा हिस्सा मिला है। इनमें सड़क से जुड़े बुनियादी ढांचे के लिए 26,000 करोड़ रुपये, 2,400 मेगावाट क्षमता वाले बिजली संयंत्र के लिए 21,400 करोड़ रुपये और सिंचाई एवं बाढ़ की रोकथाम के लिए 11,500 करोड़ रुपये का परिव्यय शामिल हैं। श्री नायडू जहां एक लाख करोड़ रुपये की सहायता की अपनी मांगों को लेकर श्री कुमार से कहीं ज्यादा मुखर थे, वहीं बजट में मुख्य परिव्यय के रूप में राज्य की नई राजधानी, अमरावती, के विकास के लिए 15,000 करोड़ रूपये की ‘विशेष वित्तीय सहायता’ की सुविधा मिली। सुश्री सीतारमण ने ‘देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए’ पोलावरम सिंचाई परियोजना को जल्द पूरा करने का वादा तो किया, लेकिन बजट दस्तावेजों में उसके वास्ते किसी ठोस परिव्यय का जिक्र नहीं है।
दोनों राज्यों पर लगभग एक-तिहाई का अस्थिर सार्वजनिक ऋण है, जो कि सकल राज्य घरेलू उत्पाद अनुपात का ऋण है और दोनों ही राज्य विशेष ध्यान देने के पात्र हैं। लेकिन देश के बाकी हिस्सों में विभिन्न परियोजनाओं, मसलन मुंबई मेट्रो रेल, के लिए टुकड़ों में आवंटन करके और विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में इसी तरह के अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे के खर्चों को नजरअंदाज करके (तमिलनाडु में चेन्नई की मेट्रो रेल और केरल की विझिंजम बंदरगाह परियोजना इसके उदाहरण हैं), सुश्री सीतारमण केन्द्र के वित्त का उचित और न्यायसंगत वितरण प्रदान करने में नाकाम रही हैं। जहां देश के ऋण-ग्रस्त और गरीब क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, वहीं केन्द्र के लिए सबसे ज्यादा राजस्व सृजित करने वाले राज्यों की अनदेखी करने से उस विकास के धीमा होने का जोखिम है जिसने इन राज्यों को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनने में सक्षम बनाने की महत्वपूर्ण क्षमता हासिल कर ली है। चूंकि इन औद्योगिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से उन्नत राज्यों ने अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी, कॉरपोरेट घरानों एवं प्रतिभा को आकर्षित करना शुरू कर दिया है और ऊर्जा से जुड़े बदलाव, ऑटोमोबाइल, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), मोबाइल और सेमी-कंडक्टर से संबंधित अगली पीढ़ी के उद्योगों को स्थापित करने के लिए आवश्यक अनुसंधान एवं विकास का आधार तैयार करना शुरू कर दिया है, लिहाजा इन्हें भी मुनासिब मदद की जरूरत है।