नरेन्द्र मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में उसके सामने रोजगार सृजन एक बड़ी चुनौती बनी रहेगी और आगामी केंद्रीय बजट में इस मसले पर ध्यान दिए जाने की उम्मीद है। नौकरी चाहने वाले युवाओं की बढ़ती तादाद और तेजी से होती तकनीकी प्रगति के चलते कम श्रमिकों की जरूरत वाली अर्थव्यवस्था के बदलते स्वरूप के मद्देनजर, कोई आसान रास्ता उपलब्ध नहीं है। हाल के अध्ययनों ने इस चुनौती की गंभीरता को शिद्दत से रेखांकित किया है। अनिगमित क्षेत्र के उद्यमों के वार्षिक सर्वेक्षण [एनुअल सर्वे ऑफ अनइंकॉर्पोरेटेड सेक्टर इंटरप्राइजेज (एएसयूएसई)] में बताया गया है कि कुल प्रतिष्ठानों में से सिर्फ 21 फीसदी ने ही उद्यमशीलता संबंधी गतिविधियों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक पिछली रिपोर्ट के समान, यह सर्वेक्षण कहता है कि अनिगमित गैर-कृषि अर्थव्यवस्था ने 2021-22 के दौरान लगभग 9.8 करोड़ श्रमिकों की तुलना में अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के दौरान लगभग 11 करोड़ श्रमिकों को रोजगार दिया। आईएलओ की भारत रोजगार रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई थी कि मैन्यूफैक्चरिंग से जुड़े रोजगार की हिस्सेदारी लगभग 12 फीसदी– 14 फीसदी पर स्थिर है और कृषि से गैर कृषि क्षेत्र की ओर नौकरियों के धीमे बदलाव की प्रक्रिया कोविड-19 महामारी की वजह से उलट गई है। सिटीग्रुप की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि रोजगार सृजन की मौजूदा दर भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।
भले ही सरकार जादुई तरीके से इस स्थिति को नहीं बदल सकती, लेकिन वह इसके समाधान के बारे में विचार तो शुरू कर ही सकती है। स्वदेशी जागरण मंच ने यह मांग की है कि केंद्र बजट में रोबोट टैक्स लगाए और रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करे। ट्रेड यूनियनों ने केंद्र से लंबे समय से लंबित भारतीय श्रम सम्मेलन की बैठक बुलाने को कहा है। केंद्रीय श्रम मंत्री मनसुख मांडविया का ट्रेड यूनियनों से संवाद करने का निर्णय एक सकारात्मक घटनाक्रम है, लेकिन उनके पास नौकरी के नुकसान को रोकने और अधिक नौकरियां पैदा करने के लिए श्रम संहिता से कहीं ज्यादा ठोस नुस्खे होने चाहिए। तकनीकी नवाचार लोगों के काम का बोझ कम करने के लिए होने चाहिए, न कि उनकी आजीविका में बाधाएं पैदा करने के लिए। कृषि उत्पादन का औद्योगीकरण करने के वास्ते, सरकार को ज्यादा नौकरियां पैदा करने और किसानों का बोझ कम करने के लिए ज्यादा सार्वजनिक एवं सहकारी निवेश पर विचार करना चाहिए। उसे रोजगार सृजन को केंद्र में रखकर विकास मॉडल तैयार करने के लिए निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्रों, श्रमिक संघों, राज्यों और राजनीतिक दलों को एक साथ लाना होगा। हाल के वैश्विक अनुभवों से यह पता चलता है कि रोजगार वृद्धि के बगैर होने वाला आर्थिक विकास सामाजिक एवं राजनीतिक उथल-पुथल का सबब बन सकता है। यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसे समझाया जा सके और इस समस्या का एक ईमानदार विवरण इससे निपटने के उपायों की दिशा में एक अच्छा शुरुआती बिंदु होगा।