म्यांमार की सेना ने फिर से वही करतूत दोहराई। मंगलवार को नागरिकों पर हमले के लिए कुख्यात जुंटा ने विद्रोहियों के कब्जे वाले सागैंग क्षेत्र में विपक्षियों की एक सभा पर हवाई हमले किए, जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 100 से ज्यादा लोग लोग मारे गए। विपक्षी दलों द्वारा गठित राष्ट्रीय एकता सरकार (एनयूजी) और चश्मदीदों ने कहा कि एक जंगी जेट और लड़ाकू हेलीकॉप्टर से उस सभा पर बमबारी की गई जिसमें विपक्षी समूहों द्वारा गठित समानांतर सरकार के दफ्तर के उद्घाटन का जश्न मनाया जा रहा था। जनरल मिन आंग हलिंग की अगुवाई वाली म्यांमार सरकार ने इस जमावड़े की अगुवाई करने वाले लोगों को “आतंकवादी इकाई” कहा। बाद में जुंटा ने हमले की पुष्टि की, लेकिन कहा कि मारे गए लोगों में से ज्यादातर लोग बागी लड़ाके थे। देश में जारी गृहयुद्ध के बीच इस हमले ने असल ने जुंटा की ताकत के बजाय उसकी छटपटाहट को ही जाहिर किया है। अतीत में, सैन्य शासनों को जिस प्रमुख विरोध का सामना करना पड़ा, वह आंग सान सू ची की अगुवाई वाला अहिंसक लोकतांत्रिक आंदोलन था। हालांकि, फरवरी 2021 के तख्तापलट के बाद, देश में एनयूजी और मौजूदा निजाम के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। इस तख्तापलट में जुंटा ने लोकप्रिय सुश्री सू ची की सरकार को गिराया, जिनकी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने एक के बाद एक लगातार चुनाव जीते थे। एनयूजी और इसकी सशस्त्र इकाई पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) ने सैन्य सरकार को हटाने के लिए जातीय उग्रवादियों से हाथ मिला लिया। सेना के हाथ से कई इलाके फिसल गए जिनमें ज्यादातर छिटपुट आबादी वाले ग्रामीण और जंगल वाले क्षेत्र हैं। खोए हुए इलाकों को वापस पाने में नाकाम होने के बाद, इसने विपक्ष को कमजोर करने के लिए हवाई हमले का सहारा लिया।
जुंटा को बागी समूहों के दबाव का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन यह अभी भी देश के ज्यादातर घनी आबादी वाले क्षेत्रों को नियंत्रित करता है। सेना का मौजूदा तौर-तरीका, अपने कब्जे वाले इलाकों पर पकड़ मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ, बागी लड़ाकों और विपक्षी नागरिकों के कब्जे वाले इलाकों पर अनियंत्रित तरीके से बल प्रयोग जारी रखने का है। रूस और चीन के मौन समर्थन और भारत की चुप्पियों के बीच, जनरल मिन आंग हलिंग को किसी भी तरह के क्षेत्रीय दबाव का भी सामना नहीं करना पड़ रहा है। दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) ने पहले पांच सूत्री शांति योजना का प्रस्ताव दिया था, जिसमें तनाव खत्म करने और समावेशी संवाद शुरू करने का आग्रह किया गया था। लेकिन जनरलों ने विपक्ष से बात करने से इनकार कर दिया है और सत्ता में विपक्ष की किसी भी तरह की हिस्सेदारी भी उन्हें मंजूर नहीं है। हालांकि, यह यथास्थिति टिकाऊ नहीं है। जब कोई निरंकुश शासन सजा की परवाह किए बगैर अपने ही लोगों की जान लेता है, तो क्षेत्रीय शक्तियां आंखें नहीं मूंद सकतीं। दक्षिण पूर्व एशिया में स्थिरता के लिए, म्यांमार मामले का शांतिपूर्ण समाधान जरूरी है। इसलिए, आसियान और रूस, चीन और भारत जैसी क्षेत्रीय शक्तियों को वहां जारी नागरिक संघर्ष को म्यांमार की आंतरिक समस्या के रूप में नहीं देखना चाहिए। उन्हें अपने आर्थिक और राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सेना को हिंसा रोकने और विपक्ष के साथ बातचीत करने के लिए मजबूर किया जा सके। म्यांमार के इस अथाह संकट का एकमात्र टिकाऊ, दीर्घकालिक और न्यायपूर्ण समाधान, एक संघीय संवैधानिक जनादेश के तहत लोकतंत्र की बहाली है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पहला कदम हिंसा को खत्म करना है।
Published - April 15, 2023 10:58 am IST