भारत के दूरसंचार स्पेक्ट्रम, जिसमें 5जी की प्रौद्योगिकी सेवाओं की पेशकश के लिए आदर्श रूप से अनुकूल बैंड शामिल हैं, की ताजा नीलामी में रिकॉर्ड 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बोलियां लगना इस बात का एक स्पष्ट संकेत है कि दूरसंचार उद्योग उबरने की राह पर अग्रसर है। जैसा कि अपेक्षित था, रिलायंस जियो सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में उभरी। उसने कुल मिलाकर 88,000 करोड़ रुपये से अधिक की पेशकश करके 48 फीसदी हवाई तरंगों (एयरवेव्स) पर कब्जा जमा लिया। भारती एयरटेल ने बेचे गए स्पेक्ट्रम के 39 फीसदी हिस्से के लिए उक्त राशि के आधे से भी कम की बोली लगाई, वहीं सबसे अधिक कर्ज में डूबी वोडाफोन आइडिया स्पेक्ट्रम के लगभग 12 फीसदी के लिए करीब 19,000 करोड़ रुपये की पेशकश करके तीसरे स्थान पर रही। और एक दिलचस्प घटनाक्रम में, जिसपर करीबी नजर रखने की जरूरत होगी, खजाने से भरपूर और आक्रामक रूप से अपना विस्तार करने वाले अडानी समूह ने बहुत कम लेकिन लक्षित मात्रा में स्पेक्ट्रम - जाहिर तौर पर सीमित उपयोग के वास्ते 5जी सेवाओं के लिए आदर्श माने जाने वाले और सबसे अधिक मांग वाले 26 गीगाहर्ट्ज बैंड - के लिए सफल बोली लगाकर दूरसंचार के क्षेत्र में अपना पहला कदम रखा। सरकार ने जहां पेशकश के लिए रखे गए स्पेक्ट्रम के लिए 4.3 लाख करोड़ रुपये के निर्धारित आरक्षित मूल्य का महज एक तिहाई से अधिक हिस्सा ही अर्जित किया है, वहीं नीलामी पर चढ़े 71 फीसदी हवाई तरगों (एयरवेव्स) के लिए बोली लगने का तथ्य दूरसंचार उद्योग के सेहत में सुधार का सबूत है। बकाया भुगतान पर चार साल की मोहलत और गैर-दूरसंचार आय को संभावित रूप से बाहर रखने हेतु समायोजित सकल राजस्व को पुनर्परिभाषित करने सहित बकाया भुगतान से संबंधित नियामक मानदंडों को आसान बनाने के लिए पिछले साल उठाए गए केन्द्र सरकार के कदमों ने सेवा प्रदाताओं को राहत दी और उन्हें निवेशकों को आकर्षित करने में मदद करने के साथ - साथ देनदारियों को एक क्रमिक अवधि में चुकाने का रास्ता भी दिया।
इसके अलावा, टैरिफ में समग्र बढ़ोतरी ने दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के मार्जिन में इजाफा करते हुए उन्हें प्रति उपभोक्ता औसत राजस्व बढ़ाने में मदद की। दूरसंचार कंपनियों को बैंक गारंटी लौटाने के सरकार के नीतिगत फैसले से निश्चित तौर पर कर्ज लेने की उनकी पात्रता में सुधार करने में मदद मिली होगी, जोकि पूंजीगत व्यय के लिहाज से अहम है। और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के हटाये जाने से लोच में हुए इजाफे ने संभावित रूप से तीनों निजी खिलाड़ियों की उत्साही भागीदारी की राह खोली। यह उस परिस्थिति से बिल्कुल अलग है जब वोडाफोन आइडिया अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही थी। हालांकि, यह नीलामी कई महत्वपूर्ण सबक भी पेश करती है। उच्च आरक्षित मूल्य ने संभावित रूप से कुछ स्पेक्ट्रम बैंडों के लिए बोली लगाने के उत्साह में कमी लाई। जहां 3.3 गीगाहर्ट्ज और 26 गीगाहर्ट्ज़ की नीलामी को कई सेवा क्षेत्रों में आरक्षित मूल्य पर बंद कर दिया गया, वहीं 600 मेगाहर्ट्ज की नीलामी को किसी ने छुआ ही नहीं और 700 मेगाहर्ट्ज के स्पेक्ट्रम का 60 फीसदी हिस्सा बिना बिके रह गया। 700 मेगाहर्ट्ज का स्पेक्ट्रम ग्रामीण कनेक्टिविटी के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में इमारतों के अंदर सिग्नल के प्रवेश के लिहाज से सबसे मुफीद है। अगर स्पेक्ट्रम को एक बेशकीमती राष्ट्रीय संसाधन के रूप में देखा जाए, तो सरकार के लिए यह बेहतर होगा कि वो इसे यूं ही पड़ा रह जाने देने के बजाय इसकी कीमत कुछ इस तरह तय करे कि दूरदराज के ग्रामीण इलाकों सहित बड़े पैमाने पर खजाने और जनता दोनों का लाभ सुनिश्चित हो।
This editorial in Hindi has been translated from English which can be read here.
Published - August 05, 2022 09:42 am IST