बीते 30 सितंबर को समाप्त हुई तिमाही के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा जारी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के ताजा अंतरिम अनुमान में वास्तविक आर्थिक वृद्धि दर 7.6 फीसदी रहने की उम्मीद है, जोकि पिछले तीन महीनों में दर्ज 7.8 फीसदी की वृद्धि दर में मामूली गिरावट है। अर्थव्यवस्था के आठ व्यापक क्षेत्रों में सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में भी मामूली मंदी देखी गई और दूसरी तिमाही में जीवीए में 7.4 फीसदी का विस्तार दर्ज किया गया, जोकि अप्रैल-जून अवधि के 7.8 फीसदी के विस्तार से 40 आधार अंक कम है। मैन्यूफैक्चरिंग, खनन, उपयोगी सेवाओं और निर्माण के क्षेत्र में मजबूत दोहरे अंकों के विस्तार ने अन्य चार क्षेत्रों की रफ्तार में हुए नुकसान की भरपाई की और यह सुनिश्चित करने में मदद की कि जीवीए में साल-दर-साल आधार पर होने वाली वृद्धि लगातार दूसरी तिमाही में आराम से सात फीसदी की रफ्तार से ज्यादा हो जाए। एक साल पहले की अवधि में संकुचन की वजह से आए अनुकूल आधार प्रभाव से उत्साहित मैन्यूफैक्चरिंग 13.9 फीसदी की वृद्धि, जोकि नौ-तिमाहियों में उच्चतम स्तर था, दर्ज करके सबसे मजबूत प्रदर्शन करने वाला क्षेत्र रहा। और निर्माण क्षेत्र ने 13.3 फीसदी की वृद्धि के साथ पांच तिमाहियों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिखाया। चार अन्य क्षेत्रों में से, कृषि के महत्वपूर्ण क्षेत्र तथा व्यापार के दो सेवा क्षेत्र होटल एवं परिवहन, संचार और वित्तीय क्षेत्र के रियल एस्टेट एवं पेशेवर सेवाओं में विकास की रफ्तार वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के मुकाबले लगभग आधी देखी गई। कृषि, पशुधन और मछली पकड़ने के क्षेत्र में जहां साल-दर-साल आधार पर होने वाली वृद्धि तेजी से धीमी होकर 18-तिमाही के निचले स्तर 1.2 फीसदी पर आ गई, वहीं इन क्षेत्रों ने लगातार तीसरी तिमाही में क्रमिक संकुचन का भी अनुभव किया। इसके चलते सुदूर ग्रामीण इलाकों में कमाई करने वाले खेती एवं संबद्ध गतिविधियों के बड़े हिस्से में अनिश्चितता को रेखांकित किया गया। सेवा अर्थव्यवस्था के दो प्रमुख घटकों - व्यापार, होटल, परिवहन और संचार में मंदी की वजह से जून की तिमाही में विकास दर 9.2 फीसदी से गिरकर 4.3 फीसदी हो गई और वित्तीय एवं रियल्टी सेवाओं में विस्तार पिछली अवधि के मुकाबले आधे से अधिक घटकर छह फीसदी रह गया। इस पर भी करीब से नजर रखने की जरूरत है क्योंकि महामारी के बाद सेवाओं में आई तेजी कमजोर होती दिख रही है।
हेडलाइन वृद्धि के आंकड़े को सावधानी से देखने की जरुरत के अलावा यह तथ्य भी है कि धुरे की कील माना जाने वाला निजी अंतिम उपभोग व्यय, जोकि अर्थव्यवस्था में मांग का सबसे बड़ा घटक है, रफ्तार पकड़ने के लिए जूझ रहा है। पिछले तीन महीने की अवधि के दौरान छह फीसदी रहने वाली निजी उपभोग व्यय में वृद्धि सितंबर वाली तिमाही में काफी धीमी होकर 3.1 फीसदी हो गई क्योंकि ग्रामीण मांग मानसून के औसत से कम रहने के चलते उपजी अनिश्चितताओं से प्रभावित रही। एनएसओ के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि हालिया आर्थिक रफ्तार में बड़े पैमाने पर उपभोग की मांग और परिसंपत्ति-सृजित करने वाले पूंजी निवेश के मामले में किए गए सरकारी खर्च का योगदान है। नीति निर्माताओं के लिए चुनौती विकास के आधार को व्यापक बनाने में मदद करना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वृद्धि की रफ्तार को बरकरार रखने और असमानता को कम करने के लिए सभी क्षेत्रों को समान रूप से ऊपर उठाया जाए।
Published - December 02, 2023 09:15 am IST