चर्चा की ऊंची मेज पर व्यापक गैरमौजूदगी: रायसीना डायलॉग

‘रायसीना डायलॉग’ में विदेश नीति पर चर्चाओं में विविधता का अभाव था

Published - February 26, 2024 10:06 am IST

सालाना ‘रायसीना डायलॉग’ के नौवें संस्करण में, विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत को ‘दूरियों को पाटने वाली शक्ति’, ‘मल्टी-वेक्टर’ नीति के जरिए साझी जमीन तलाशने वाला देश और ‘विश्वमित्र’ यानी दुनिया के दोस्त की भूमिका निभाने वाला बताया। ऐसी ऊंची महत्वाकांक्षाओं के कारण ही विदेश मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया यह सम्मेलन, दुनिया के बड़े मुद्दों व चुनौतियों पर वैश्विक नेताओं की भागीदारी का लक्ष्य रखता है। इस आयोजन का उद्घाटन करने वाले ग्रीस के प्रधानमंत्री किरियाकोस मित्सोताकिस ने भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी कनेक्टिविटी परियोजनाओं के महत्व के बारे में बात की। ग्लोबल गवर्नेंस, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के शीर्ष पर गैरबराबरी और उसमें सुधार की जरूरत पर चर्चा की गयी। वैश्विक निर्णय लेने वाली इस ऊंची मेज पर भारत की सही जगह, या जैसा कि जयशंकर ने कहा, “खेल का मैदान के बजाय खिलाड़ी बनने” और इसी तरह पिछले साल जी-20 की मेजबानी में भारत की सफलता का भी बार-बार जिक्र किया गया। ब्राजील में जी-20 के विदेश मंत्रियों की बैठक के चलते, सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य, महत्वपूर्ण जी-7 या ब्रिक्स-10 देशों से किसी वरिष्ठ मंत्री स्तर की उपस्थिति नहीं हो सकी। हालांकि, मध्य और पूर्वी यूरोप से बड़ा मंत्रीय दल मौजूद रहा, जिसमें बाल्टिक-नॉर्डिक फोरम के सभी मंत्री शामिल थे। इसने सरकार के लिए एक नयी राजनयिक संलग्नता को संभव बनाया जो यूरोप के इस हिस्से के साथ व्यापारिक समझौतों और निवेश संबंधों की तलाश कर रही है। इस हिस्से की अक्सर अनदेखी की जाती है, पर यह आर्थिक रूप से प्रतिस्पर्धी है।

हालांकि, बातचीत का बड़ा हिस्सा वैश्विक संघर्षों पर केंद्रित रहा। यूरोप के गणमान्य व्यक्तियों की भारी उपस्थिति ने यूक्रेन में रूसी युद्ध की ओर खास तौर पर ध्यान खींचा। और, सैन्य व नौसैन्य रणनीति पर पैनलों ने आक्रामक चीन से निपटने की जरूरत पर ध्यान केंद्रित किया। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन चर्चाओं में संतुलन की कोई कोशिश नहीं थी, क्योंकि न तो रूस और न ही चीन को आमंत्रित किया गया था। दक्षिण पूर्व एशिया, लैटिन अमेरिका, और यहां तक कि दक्षिण एशिया (नेपाल और भूटान को छोड़कर) से यथासंभव न्यूनतम उपस्थिति थी। एक बड़ी उपस्थिति से ज्यादा विविधता भरा रुख सामने आता और उक्त संघर्षों से वे किन दबावों का सामना कर रहे हैं, इस पर रोशनी पड़ती। लोकतंत्र से संबंधित पैनलों ने स्वतंत्रताओं में गिरावट को लेकर भारत के भीतर जीवंत बहसों से स्वाभाविक रूप से परहेज किया, लेकिन इस विमर्श में गैर-सरकारी सिविल सोसाइटी संगठनों की गैरहाजिरी ने उन चुनौतियों पर संकीर्ण दृष्टि निर्मित की जिनका सामना दुनियाभर के लोकतंत्र कर रहे हैं। गाजा में इजराइली युद्ध पर केंद्रित चर्चाएं उल्लेखनीय रूप से अनुपस्थित रहीं। इस तरह की चूकों का मतलब विदेश नीति से जुड़े चिंतन के लिए भारत के इस विशिष्ट मंच पर चर्चाओं में विविधता की कमी भर नहीं है, बल्कि वे जयशंकर की इस अन्यथा दुरुस्त टिप्पणी के महत्व को कम करती हैं कि रायसीना डायलॉग ‘ग्लोबल पब्लिक स्क्वॉयर’ का ‘मेड इन इंडिया’ संस्करण बन गया है।

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