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नई पारी, पुरानी समस्याएं: पुतिन का नया कार्यकाल और यूक्रेन युद्ध

Published - May 16, 2024 09:51 am IST

रूस के व्लादिमीर पुतिन के लिए युद्ध के प्रभावों को घरेलू मोर्चे पर पड़ने से रोकना मुश्किल हो रहा है

रूस के राष्ट्रपति के रूप में पांचवीं बार शपथ लेने के बाद व्लादिमीर पुतिन द्वारा लिए गए अहम फैसलों में से एक था लंबे समय तक रक्षा मंत्री रहे सर्गेई शोइगु को हटाना। रक्षा मंत्रालय को चलाने के लिए एक असैनिक अर्थशास्त्री, आंद्रेई बेलौसोव, को लाना यह दर्शाता है कि यूक्रेन में चलने वाला युद्ध रूस के लिए किस कदर एक आर्थिक युद्ध बन गया है क्योंकि वह कठोर पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद अपनी युद्धकालीन अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और अपने ऊर्जा संबंधी रिश्तों और रक्षा उत्पादन को जारी रखने के लिए जूझ रहा है। इस युद्ध की योजना बनाने और उसे क्रियान्वित करने के शोइगु के तौर-तरीकों की काफी आलोचनाएं हुई हैं क्योंकि पश्चिमी खुफिया जानकारी के हिसाब से, रूस को इस युद्ध के तुरत-फुरत निपट जाने की उम्मीद थी। लेकिन 2014 में क्रीमिया पर कब्जे और 2015 से सीरिया में रूस के सैन्य हस्तक्षेप को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले शोइगु के क्रेमलिन और रूस के रक्षा औद्योगिक प्रतिष्ठान, दोनों के साथ गहरे रिश्ते हैं। यहां तक कि जब रूस को शुरू में झटकों का सामना करना पड़ा और दिवंगत वैगनर प्रमुख येवगेनी प्रिगोझिन की अगुवाई में एक दुर्लभ विद्रोह ने रक्षा नेतृत्व को चुनौती दी, उस वक्त भी श्री पुतिन ने श्री शोइगु पर अपना भरोसा बनाए रखा। लेकिन अब जबकि पुतिन यूक्रेन में रूस की जीत के वादे के साथ एक नया कार्यकाल शुरू कर रहे हैं, तो उन्होंने रक्षा मंत्रालय में आमूलचूल बदलाव करने और एक टेक्नोक्रेट लाने का फैसला किया है, जिसकी तात्कालिक और प्राथमिक जिम्मेदारी सैन्य उद्देश्यों को शीघ्रता से पूरा करना होगा।

यह बदलाव ऐसे वक्त में हुआ है जब रूस ने युद्ध के मैदान में रफ्तार पकड़ ली है। पिछले हफ्ते, उसने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खार्किव पर हमला करने के स्पष्ट प्रयास के तहत उत्तर-पूर्व में एक नया आक्रमण शुरू किया। यूक्रेन अमेरिका से नए हथियार मिलने की उम्मीद कर रहा है, लेकिन यह साफ नहीं है कि यह सब युद्ध में थकी हुई उसकी सेना के लिए रूसी हमले का सामना करने के लिहाज से पर्याप्त होगा या नहीं। पुतिन का तात्कालिक लक्ष्य इस युद्ध को जीतना है, लेकिन उनके पास जीत का कोई स्पष्ट रास्ता भी नहीं है। इस युद्ध ने पश्चिम के साथ रूस के रिश्तों को स्थायी नुकसान पहुंचाया है और रूस को चीन के हाथों में धकेल दिया। खासकर यूरोप के साथ, पुतिन ने मजबूत आर्थिक और ऊर्जा संबंधी रिश्ते बनाये थे। घरेलू मोर्चे पर, उन्होंने राज्य एवं समाज पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है और वह असहमति के प्रति असहिष्णु हैं। फिलहाल, राज्य प्रतिबंधों की आंच को आम नागरिकों तक पहुंचने से रोकने में कामयाब रहा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि अगर यह युद्ध अंतहीन रूप से जारी रहा तो क्रेमलिन ऐसा कब तक करता रह पायेगा। यूक्रेन ने भी रूस के काले सागर बेड़े और सीमावर्ती शहरों पर हमला करके युद्ध की लागत बढ़ा दी है। ऐसा लगता है कि पुतिन यह सोच रहे हैं कि तमाम चुनौतियों के बावजूद युद्ध की रफ्तार उनके पक्ष में है। भले ही उनकी सेना यूक्रेन में और ज्यादा बढ़त हासिल कर ले, लेकिन वह एक ऐसे रूस पर शासन कर रहे होंगे जो आंतरिक रूप से बेहद दमनकारी है, आर्थिक रूप से कमजोर तथा पश्चिम में अलग-थलग है और स्थायी रूप से शत्रुतापूर्ण रवैया रखने वाले एक पड़ोसी के साथ युद्ध में उलझा है।

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