चार निर्दलीयों के समर्थन के साथ, जम्मू एवं कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस-सीपीआई(एम) के इंडिया ब्लॉक गठबंधन को नव-निर्वाचित विधानसभा में 90 में से 53 विधायकों का समर्थन मिल गया है। इससे नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नामित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हौसला मिलना चाहिए, क्योंकि वह इस केंद्रशासित प्रदेश में मतदाताओं से किये गये वादे पूरे करने की कठिन राह पर निकल रहे हैं। इंडिया ब्लॉक ने इन चुनावों में बहुत सी मुश्किलों का सामना किया जैसे- घाटी में खंडित पार्टी प्रणाली जहां उम्मीदवारों की भरमार थी; भाजपा द्वारा चुनौती, जिसने जम्मू में अपना आधार मजबूत किया और बहुमत का जुगाड़ करने के लिए परिसीमन प्रक्रिया का इस्तेमाल करने की कोशिश की; और शंकालु मतदाता, जो इस पूर्व राज्य को दो भागों में बांटे जाने और उसका विशेष दर्जा क्षीण किये जाने के बाद से ही राज्य के दर्जे, स्थानीय नुमाइंदगी और सामान्य राजनीति के अभाव में शायद निराश था। लेकिन उत्साही मतदाताओं का एक स्पष्ट संदेश था। घाटी में, इंडिया ब्लॉक को प्रतिद्वंद्वियों (जिसमें प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी द्वारा खड़े किये गये निर्दलीय भी शामिल हैं) पर तरजीह देते हुए निर्णायक रूप से चुना गया। इस पूर्व राज्य में कश्मीरी स्वायत्तता और नागरिकों के अधिकारों पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के अनवरत मध्यमार्गी व्यवहार, कांग्रेस के सुलह-सफाई के संदेश और राज्य के दर्जे की बहाली के प्रति समर्थन, जम्मू एवं कश्मीर के इकलौते वामपंथी और लंबे समय से विधायक मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने गठबंधन को घाटी में सीटों का सबसे बड़ा हिस्सा पाने और जम्मू में सुरक्षित सीटें (जनजातियों के लिए) जीतने में मदद की। उसे सभी क्षेत्रों और समुदायों में एक सम्मानजनक मत प्रतिशत हासिल हुआ।
एनसी को अब इस जनादेश पर खरा उतरना होगा, लेकिन यह काम आसान नहीं है। केंद्र में बैठी भाजपा ने भारत के इस संघर्षग्रस्त सीमाई प्रांत के प्रति सख्त रुख पर जोर दिया है। चुनाव भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा उसे बाध्य किये जाने के बाद कराये गये। हालांकि गृह मंत्री अमित शाह ने राज्य के दर्जे की बहाली का वादा बार-बार किया है, लेकिन नागरिकों को आश्वस्त करने वाले इस बुनियादी कदम में अनुचित देरी यह बताती है कि केंद्र अपनी पसंद के समय पर ही ऐसा करने को तैयार है। लेकिन जब मतदाताओं ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि सत्ता की बागडोर इंडिया ब्लॉक को मिले, तो सबसे अच्छा यह होगा कि केंद्र जनमत का सम्मान करे, राज्य के दर्जे की बहाली की प्रक्रिया तेज करे और नव-निर्वाचित सरकार को अपने वादे पूरे करने दे। यह अनिवार्य है, क्योंकि बीते कुछ सालों में उठाये गये स्वेच्छाचारी कदमों से भले ही 1990 के दशक वाले आतंकवाद के अंधेरे दिनों की वापसी न हुई हो, पर हताशा और मोहभंग को साफ देखा जा सकता है। केंद्र से फरमान के जरिये शासन और चुनाव अभियान से परे जाकर, राज्य के दर्जे और जीवंत विधानसभा से लोकतंत्र के राजनीतिक, प्रशासनिक और नागरिक पहलुओं को सक्रिय बनाने में मदद मिलेगी।
Published - October 11, 2024 10:12 am IST