पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने प्रसिद्ध तिरूपति लड्डू प्रसादम में प्रयुक्त घी में कथित मिलावट के मामले में याचिकाकर्ताओं से उचित ही कहा कि वे अदालत को “राजनीतिक कुश्ती का अखाड़ा” न बनाएं, लेकिन इस मुद्दे के धूमधाम एवं पवित्रता से जुड़े किसी खाद्य पदार्थ में गुणवत्ता सुनिश्चित करने तक ही सीमित रहने की संभावना नहीं है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक की प्रत्यक्ष निगरानी में एक “स्वतंत्र विशेष जांच दल (एसआईटी)” गठित करके, अदालत ने चतुराई से निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए केंद्र को जवाबदेह बना दिया। लेकिन पांच सदस्यीय एसआईटी की संरचना - दो सीबीआई अधिकारी, दो आंध्र प्रदेश पुलिस के अधिकारी और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के एक डोमेन विशेषज्ञ - को देखते हुए इसकी निष्पक्षता को लेकार सवाल उठाए जाने की संभावना है। सीबीआई और आंध्र प्रदेश पुलिस राजनीतिक गठबंधन के दो सहयोगियों, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी), के अधिकार क्षेत्र में आती है। अदालत में केंद्र के आचरण से पक्षपात के और आरोप लगने की संभावना है, जहां उसने अदालत द्वारा मामले को सीबीआई के नेतृत्व वाली एसआईटी को सौंपे जाने के फैसले से पहले नायडू द्वारा गठित एसआईटी पर ‘पूर्ण विश्वास’ व्यक्त किया था। मोदी सरकार ने ऐसा ही विश्वास पश्चिम बंगाल जैसे विपक्ष शासित राज्यों द्वारा 2013 में सारदा समूह की पोंजी योजना के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए गठित जांच पैनलों पर व्यक्त नहीं किया है।
आंध्र प्रदेश भाजपा की अध्यक्ष और राजमुंदरी से सांसद दग्गुबाती पुरंदेश्वरी द्वारा आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वाईएसआरसीपी के मुखिया वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी से ‘भगवान वेंकटेश्वर में आस्था की घोषणा’ की मांग के साथ लड्डू का मुद्दा पहले ही सांप्रदायिक रंग ले चुका है। जगन मोहन रेड्डी एक ईसाई हैं। सत्तारूढ़ टीडीपी और उसके सहयोगियों, भाजपा और उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण की जेएसपी के कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद रेड्डी को सितंबर में अपनी तिरुपति यात्रा रद्द करनी पड़ी। इन दलों ने कथित मिलावट में पूर्ववर्ती जगन मोहन रेड्डी प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप लगाया है। नायडू सरकार ने बॉलीवुड अभिनेताओं और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला द्वारा कथित तौर पर हस्ताक्षरित “आस्था की घोषणा” संबंधी दस्तावेजों को जारी करके सुश्री पुरंदेश्वरी की मांग को बल दिया। जैसा कि ‘द हिंदू’ ने रिपोर्ट किया है, डेयरी संदूषकों का पता लगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ‘गैस क्रोमैटोग्राफी’ विधि से घी के नमूनों में “बाहरी वसा” की सटीक मात्रा का पता लग पाने की संभावना नहीं है। केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस आरोप की निष्पक्ष जांच हो कि तमिलनाडु की एक डेयरी द्वारा आपूर्ति किए गए घी को दूषित करने का प्रयास किया गया था, जिसके नमूनों का परीक्षण 6 जुलाई और 12 जुलाई को किया गया था। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जांच इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दिए बिना हो।
Published - October 10, 2024 09:51 am IST