संसदीय मामलेः 17वीं लोकसभा का अंतिम सत्र

चुनावी तैयारी का मंच बना 17वीं लोकसभा का आखिरी सत्र

Published - February 12, 2024 11:22 am IST

शनिवार को 17वीं लोकसभा के आखिरी सत्र के समापन के साथ ही आम चुनाव का बिगुल बज गया है और मुकाबले की तैयारी शुरू हो चुकी है। इस सत्र के दौरान अपने विभिन्न हस्तक्षेपों में, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जहां कांग्रेस पर तीखा हमला बोला, वहीं क्षेत्रीय पार्टियों और उनके नेताओं की आलोचना से परहेज किया। शीतकालीन सत्र के दौरान 146 सदस्यों के अभूतपूर्व निलंबन के बाद, बीता सत्र कहीं ज्यादा खुशनुमा माहौल में शुरू हुआ। सभी सदस्यों की सदन में वापसी हुई, जिनमें वो 14 सांसद भी शामिल थे जिनके मामले दोनों सदनों की विशेषाधिकार समितियों के पास भेजे गये थे। सत्र से ठीक पहले, समितियों ने उनके नामों को पाक-साफ कर दिया। लेकिन हाल ही में उच्च सदन के लिए निर्वाचित हुए, आम आदमी पार्टी (आप) के सांसद व नेता संजय सिंह इस आधार पर शपथ नहीं ले सके कि उनके खिलाफ पिछले कार्यकाल से जुड़े विशेषाधिकार उल्लंघन के मामले अभी लंबित हैं। राज्यसभा की विशेषाधिकार समिति ने बैठक की तारीख तक तय नहीं की है।

राम मंदिर पर एक प्रस्ताव पर चर्चा की खातिर सत्र को एक दिन के लिए बढ़ाया गया। सिर्फ वामपंथी पार्टियां ही थीं जिन्होंने इसके बहिष्कार पर साफ नजरिया सामने रखा और कहा कि वे किसी सांप्रदायिक एजेंडे का हिस्सा नहीं बनेंगी। किसी विवाद को न्योता देने से बचते हुए, दूसरी विपक्षी पार्टियों ने इससे दूर रहने के दूसरे कारण बताये। इस कार्यवाही से दूर रहने के लिए, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने, लोकसभा में, तमिल मछुआरों की दुर्दशा का हवाला दिया, और राज्यसभा में, राज्य में बाढ़ की वजह से हुई तबाही के प्रति केंद्र की उदासीनता पर फोकस किया। तृणमूल कांग्रेस और आप के सांसद भी नजर नहीं आये। बीते पांच साल भारतीय संसदीय इतिहास में अभूतपूर्व रहे। संसद को ब्रिटिशकालीन इमारत से नये और काफी बड़ी परिसर में स्थानांतरित किया गया, जिसकी डिजाइन पर भी सवाल उठे। यह कितना विरोधाभास-पूर्ण है कि सांसदों को एक तरफ ज्यादा जगह मिली, तो दूसरी तरफ 17वीं लोकसभा ने विपक्ष की भूमिका में लगातार क्षरण देखा। सबसे पहला तो यह कि इस लोकसभा ने पूरे कार्यकाल के दौरान बिना उपाध्यक्ष के काम किया। आम तौर पर यह पद विपक्ष के पास रहता था। इन पांच सालों में राज्यसभा में विपक्ष के संख्याबल में लगातार गिरावट देखी गयी। कांग्रेस के पास उच्च सदन में केवल 30 सदस्य हैं और वह भारतीय जनता पार्टी के 93 से बहुत पीछे है। सरकार की मर्जी और तरीके चले, जबकि विपक्ष ने किनारे रहकर समय बिताया।

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