इंटरनेट-बंदी और सोशल मीडिया पर बोलने की आजादी पर मनमाना अंकुश सत्ता में बैठे लोगों के लिए बेरोक हथियार बन गया है। हरियाणा व राजस्थान की राज्य सरकारें और केंद्र सरकार किसानों के विरोध-प्रदर्शन के साथ जिस तरह से पेश आयी हैं, उसमें यह तथ्य बिल्कुल साफ नजर आता है। इन राज्य सरकारों ने इंटरनेट-बंदी का इस्तेमाल मनमाने ढंग से, और बिना पर्याप्त वजहों के किया है। उन्होंने इस तरह की बंदी लागू करने के लिए किसी वास्तविक सबूत के बगैर, कानून-व्यवस्था के ध्वस्त होने की आशंका से जुड़े अस्पष्ट कारणों का इस्तेमाल किया है और इस तरह, यह मामला ‘अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ’ में निर्धारित समानुपातिकता के परीक्षणों के तहत आता है। दूसरी तरफ, भारत सरकार ने विरोध-प्रदर्शनों का नेतृत्व करनेवालों या महज समर्थन करनेवालों के खाते ब्लॉक करने के लिए ‘एक्स’ जैसी सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी करने के अपने बारंबार-प्रयुक्त हथियार का इस्तेमाल किया है। इसके लिए उसने इन खाता धारकों को कारण भी नहीं बताये हैं। पहले, जब ‘एक्स’ को ‘ट्विटर’ के नाम से जाना जाता था, वह ब्लॉक करने के सभी अनुरोधों को तब तक स्वीकार नहीं करता था जब तक कि वे उसके अपने नियमों का उल्लंघन नहीं करते थे या दर्ज कारणों के साथ यथेष्ट रूप से जारी नहीं किये जाते थे। ट्विटर/एक्स ने 2020-21 में किसान आंदोलन के पहले चरण के दौरान इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना तकनीक मंत्रालय द्वारा जारी कई थोक ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती देने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया था। हाईकोर्ट ने, एकल पीठ द्वारा दिये गये समस्याग्रस्त फैसले में, एक्स की याचिका खारिज कर दी, लेकिन बाद में कंपनी की अपील स्वीकार की और उस पर सुनवाई चल रही है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इलॉन मस्क द्वारा अधिग्रहण के बाद से, ‘एक्स’ अपनी उस पारदर्शिता रिपोर्ट को प्रकाशित नहीं कर रहा है जो ब्लॉक करने, सामग्री या खाता हटाने के लिए भारतीय सरकारी एजेंसियों द्वारा किये गये कानूनी अनुरोधों की जानकारी देती है। ‘एक्स’ ने यह स्वीकार किया कि उसने सरकार द्वारा चिन्हित खातों और पोस्टों को रोकने का फैसला लिया है, भले ही वह इन कार्रवाइयों से असहमत हो। ऐसा करके वह इन कार्रवाइयों से प्रभावित अपने उपयोगकर्ताओं की किसी भी किस्म की मदद करने से हाथ खड़े कर रहा था। यह अप्रत्याशित नहीं है। मस्क के अधीन ‘एक्स’ मुक्त अभिव्यक्ति का वह फलता-फूलता मंच नहीं रह गया है जो चर्चा, सूचना साझा करने और यहां तक कि सरकारों की आलोचना को बढ़ावा देने के लिए
डटकर प्रयास करता है। अब यह अपने कामकाज के लिए संकेत अपने मालिक के विचारों और कारोबारी हितों से ग्रहण करता है। लेकिन इससे भी ज्यादा चिंताजनक यह है कि कर्नाटक हाईकोर्ट के अब भी प्रभावी फैसले ने इस विचार को बल दिया है कि सरकारी प्राधिकारियों को सामग्री के सृजनकर्ता को बिना नोटिस दिये किसी सामग्री की ब्लॉकिंग का आदेश जारी करने या बिना वैध कारण के खाता-स्तरीय ब्लॉकिंग की मांग के मामले में पूरी छूट मिली हुई है। उम्मीद की जाती है कि हाईकोर्ट में ‘एक्स’ की अपील से अपने मंचों पर सामग्री को लेकर सोशल मीडिया कंपनियों के अधिकार और दायित्व निर्णायक रूप से स्पष्ट होंगे। जहां तक सरकार की बात है, तो उसे इसकी बिल्कुल फिक्र नहीं लगती कि स्वतंत्र, खुले और लोकतांत्रिक समाज के बतौर भारत की प्रतिष्ठा के लिए इस तरह की कार्रवाइयों के क्या मायने हैं। ध्यान रहे कि भारत में सोशल मीडिया कंपनियों की मौजूदगी का मुख्य कारण सिर्फ बड़े उपभोक्ता वर्ग की मौजूदगी नहीं, बल्कि उसका स्वतंत्र, खुला और लोकतांत्रिक समाज है।
Published - February 24, 2024 10:18 am IST