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कामयाब टक्कर: दो क्षुद्र ग्रहों की दिशा बदलने का नासा का परीक्षण

Published - October 15, 2022 12:00 pm IST

नासा के डार्ट मिशन से यह उम्मीद जगी है कि विज्ञान खगोलीय खतरों से हमें बचा सकता है

नासा के वैज्ञानिकों ने पहली बार एक अंतरिक्ष यान का इस्तेमाल करके क्षुद्र ग्रह की दिशा बदलने में सफलता हासिल की है। इसी 27 सितंबर को भारतीय समय के मुताबिक सुबह 4.44 बजे एक छोटे अंतरिक्ष यान डार्ट (डबल एस्टेरॉयड रीडायरेक्शन टेस्ट) से 160 मीटर लंबे डाइमॉरफोस क्षुद्र ग्रह को निशाना बनाया गया। डायमॉरफोस एक बड़े क्षुद्र ग्रह डिडिमोस की परिक्रमा कर रहा था। दोनों पृथ्वी से 1.12 करोड़ किलोमीटर दूर सूर्य की परिक्रमा कर रहे थे। चूंकि दोनों ही पिंड अपने जीवनकाल में पृथ्वी के 64 लाख किलोमीटर के दायरे में नहीं आते, इसलिए उनसे कोई वास्तविक खतरा नहीं था। हालांकि, डार्ट एक ऐसे परीक्षण का मिशन था जिसमें ‘काइनेटिक इंपैक्टर’ तकनीक की जांच होनी थी कि इससे किसी क्षुद्र ग्रह की दिशा मनचाहे रूप में बदलने में कामयाबी मिलती है या नहीं। लगभग 10 दिनों तक दोनों पिंडों का अध्ययन करने के बाद नासा ने घोषणा की कि छोटे क्षुद्र ग्रह की दिशा वाकई बदल गई। शुरुआत में, डिडिमोस की कक्षा में डायमॉरफोस को चक्कर काटने में 11 घंटे और 55 मिनट लगते थे। टक्कर के बाद, अब इस अवधि में 32 मिनट का बदलाव हुआ है। अब यह सिर्फ 11 घंटे 23 में मिनट में अपनी परिक्रम पूरी कर रहा है। परीक्षण का लक्ष्य इस बात की जांच करना था कि धरती से टकराने से कई साल पहले ही ‘काइनेटिक इंपैक्टर’ तकनीक का इस्तेमाल करके क्या किसी क्षुद्र ग्रह की दिशा मोड़ी जा सकती है? यह आपातकाल की तरह कोई आखिरी समय में की गई कोशिश नहीं थी। हालांकि, सभी क्षुद्र ग्रह एक जैसे नहीं होते, इसलिए इस तकनीक को कामयाब मानने से पहले और ज्यादा परीक्षण की जरूरत है।

यह कोशिश, अकेले अमेरिका नहीं कर रहा है। चीन की योजना पृथ्वी की तरफ बढ़ रहे 40 मीटर लंबे क्षुद्र ग्रह 2020पीएन1 को साल 2026 तक विक्षेपित करने की है। इस तकनीक को विकसित करने की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि एक छोटे से क्षुद्र ग्रह की टक्कर के भी गंभीर नतीजे हो सकते हैं। चिकशुलुब क्रेटर आज से 6.6 करोड़ साल पहले पृथ्वी से टकराए 10 किमी लंबे क्षुद्र ग्रह की याद दिलाता है जिसने पृथ्वी से लगभग 75 फीसदी वनस्पतियों और जानवरों का सफाया कर दिया था। लगभग 100 मीटर लंबे क्षुद्र ग्रह के टकराने से भी चेन्नई के आकार के शहर नेस्तनाबूद हो सकते हैं। दूसरा सवाल यह है कि क्या इस तकनीक का इस्तेमाल करके विपुल खनिज भंडार वाले क्षुद्र ग्रहों को विक्षेपित करके किसी नजदीकी जगहों पर भेजा जा सकता है, ताकि बाद में उन खनिजों को धरती तक लाया जा सके। किसी भी देश ने अब तक इस लक्ष्य के बारे में खुलकर कुछ नहीं कहा है। किसी खगोलीय पिंड की दिशा बदलने की दिशा में नासा का यह कदम, फिल्म और कहानी के लिए आदर्श विषय हो सकता है। हाल ही में “डॉन्ट लुक अप” फिल्म सीधे तौर पर इसी विषय पर आधारित थी। हालांकि, पृथ्वी पर इस तरह के कई जानलेवा खतरे मौजूद हैं, जलवायु परिवर्तन इनमें सबसे निश्चित और आसन्न नजर आ रहा है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि इंजीनियरिंग और विज्ञान की इस ताकत के आधार पर, भीषण तबाही मचाने वाली इन आपदाओं से बचाने के तरीके भी खोजे जाएंगे।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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