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राजकाज की दशा-दिशा: जो बाइडेन का दूसरा ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ संबोधन

Updated - February 10, 2023 12:30 pm IST

Published - February 10, 2023 12:24 pm IST

श्री बाइडेन जानते हैं कि उन्हें अमेरिकी अर्थव्यवस्था और वैश्विक चुनौतियों, दोनों मोर्चे पर ध्यान देना होगा

अपने दूसरे ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ संबोधन में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक व्यापक विषय – वस्तु के तहत कई संदेश देने की कोशिश की। उनके संबोधन का लब्बोलुआब यह था कि उनका प्रशासन विदेशों में विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करते हुए अमेरिका की अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है। उनके 72 मिनट के भाषण का ज्यादातर हिस्सा घरेलू एजेंडे पर केन्द्रित था। खासकर, उनके आर्थिक आशावाद पर। उनके भाषण में आत्म-प्रशंसा, विचार और शब्दों की बाजीगरी दिखी। उन्होंने अपनी आर्थिक नीतियों पर गर्व जताया, बेरोजगारी दर एवं मुद्रास्फीति के कम रहने के तथ्य पर जोर दिया, बेहद अमीर लोगों पर कर लगाने एवं आवश्यक दवाओं की कीमतों को कम करने के संकल्प को दोहराया, सामाजिक सुरक्षा एवं चिकित्सा सहायता में कटौती नहीं करने का वादा किया और यह ऐलान किया कि दुनिया भर में लोकतंत्र मजबूत हुए हैं और तानाशाही कमजोर हुई है। भाषण में भले ही कोई बड़ा नीतिगत बदलाव नहीं नजर आया हो, लेकिन 80 वर्षीय राष्ट्रपति ने “काम खत्म करने” के मुहावरे को दोहराकर यह संकेत दिया है कि उन्हें अपने अबतक के कार्यों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए और अधिक समय की जरूरत है। इसे उनकी दोबारा उम्मीदवारी के लिए प्रचार अभियान के तौर पर देखा गया। श्री बाइडेन ने रूस और चीन को विदेश नीति की प्रमुख चुनौतियों के रूप में चिन्हित भी किया। उन्होंने यूक्रेन हमले को “अमेरिका के लिए एक परीक्षा” बताया और अप्रत्यक्ष रूप से गुब्बारे की घटना के संदर्भ में यह कहा कि अपनी संप्रभुता पर खतरा आने पर अमेरिका “देश की रक्षा के लिए कार्रवाई करेगा”।

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श्री बाइडेन ने जहां इस भाषण का इस्तेमाल अपनी विरासत का बचाव करने और अपने दृष्टिकोण को पेश करने के लिए किया, वहीं इसने उनके प्रशासन की महत्वपूर्ण चुनौतियों को भी रेखांकित किया। निश्चित रूप से, बेरोजगारी दर 1969 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गई है और यह जनवरी 2023 में 3.4 फीसदी रही और इस महीने में मुद्रास्फीति में गिरावट जारी रही। फिर भी, ऊर्जा की ऊंची कीमतों और तनख्वाह में धीमी बढ़ोतरी के बोझ तले दबे अधिकांश अमेरिकी (हाल के एक सर्वेक्षण में 58 फीसदी) अर्थव्यवस्था को संभालने के उनके तौर-

तरीकों से नाखुश हैं। राष्ट्रपति के पास दोबारा चुनाव जीतने की योजना हो सकती है, लेकिन सिर्फ 37 फीसदी डेमोक्रेट ही उनका समर्थन करते हैं। श्री बाइडेन को रिपब्लिकन-नियंत्रित सदन में कांग्रेस की तरफ से भी अपनी नीतियों के प्रति बढ़ते प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। विदेश नीति के मामले में, अमेरिका अब तक पूरी तरह से यूक्रेन के पीछे खड़ा रहा है। लेकिन, जैसे-जैसे यह युद्ध आगे बढ़ रहा है, उसके संभावित अंत को लेकर सवाल उठ रहे हैं। श्री बाइडेन के लिए इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि एक ऐसे वक्त में जब दो महाशक्तियां वैश्विक प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं, चीन के साथ संबंधों को कैसे संभाला जाए। गुब्बारे वाली घटना बताती है कि यह कोई आसान काम नहीं है। श्री बाइडेन के पहले कार्यकाल का आधा हिस्सा खत्म हो चुका है। अब जबकि चुनावी मौसम गरमा रहा है और वक्त कम है, श्री बाइडेन के सामने लक्ष्य बिल्कुल साफ है। अगर वह प्रतिस्पर्धा और अवसरों का उपयुक्त सिलसिला बनाना चाहते हैं, तो उन्हें आर्थिक मोर्चे पर ज्यादा निर्णायक तरीके से काम करना होगा। उन्हें यूरोप में अमेरिका की हितों से समझौता किए बिना यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की दिशा में काम करना होगा और तनाव में बढ़ोतरी एवं संबंधों में गिरावट को रोकने के लिए अमेरिका-चीन संबंधों को एक मजबूत आधार देना होगा।

This editorial has been translated from English, which can be read here.

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