इस जून में भारत का माल निर्यात लगातार तीसरे महीने बढ़ा और यह 2.55 फीसदी बढ़कर 35.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया। आयात पांच फीसदी बढ़कर 56.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया, जो मई के सात महीने के उच्चतम स्तर लगभग 62 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम है। व्यापार घाटा, पिछले जून की तुलना में 9.4 फीसदी बढ़ने के बावजूद, पिछले महीने से थोड़ा कम हुआ है। तेल घाटा, जो मई में रिकॉर्ड 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था, घटकर 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक आने के बावजूद चिंता का सबब बना हुआ है। पेट्रोलियम निर्यात 18.3 फीसदी गिरकर 5.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रह गया और यह मई के आंकड़से लगभग समान सीमा तक नीचे था। पिछले दो महीनों के दौरान तेल की कीमतों के लगभग अपरिवर्तित रहने के कारण, यह निर्यात की मात्रा में गिरावट का संकेत देता है। ठीक इसी तरह, जून माह के तेल आयात में 19.6 फीसदी की तेज बढ़ोतरी घरेलू मांग में वृद्धि का संकेत देती है। अप्रैल से जून की तिमाही में कुल तेल आयात जहां 23 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है, वहीं इसकी वैश्विक कीमतें एक साल पहले की तुलना में लगभग नौ फीसदी ज्यादा हैं। पहली तिमाही के 62 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार घाटे, जो पिछले साल की समान अवधि के घाटे की तुलना में 10.9 फीसदी ज्यादा है, का लगभग आधा हिस्सा तेल घाटा है।े
जून में सोने के आयात का मूल्य 38.7 फीसदी गिरकर 3.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 2024-25 में अब तक का सबसे कम है। लेकिन चांदी का आयात, जो तेजी से बढ़ रहा है, जून में 377 फीसदी बढ़ गया। सरकार को संयुक्त अरब अमीरात के साथ मुक्त व्यापार समझौते के तहत गिफ्ट सिटी के जरिए रियायती शुल्क आयात के कारण भारत के सर्राफा बाजार में व्यवधान से जुड़ी चिंताओं की जांच करनी चाहिए। इसके साथ ही, भारत के रत्न और आभूषण के निर्यात में निरंतर गिरावट, जो जून में लगातार सातवें महीने घटी, पर ध्यान देने की जरूरत है। तेल और सोने से परे, आयात खर्च इस साल अब तक लगभग तीन फीसदी बढ़ गया है। इसमें पिछले साल की समान तिमाही में 10 फीसदी की गिरावट थी। जून में वृद्धि बढ़कर सात फीसदी हो गई, जो विवेकाधीन घरेलू मांग में सुधार का संकेत देता है। यह अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा शगुन है। भारत की व्यापार नीति का ध्यान घाटे, जिसे बाकी दुनिया की तुलना में तेजी से बढ़ने का स्वाभाविक नतीजा कहा गया है, को रोकने के बजाय निर्यात को बढ़ावा देने पर रहना चाहिए। यह उल्लेखनीय है कि भारत के शीर्ष 30 निर्यात क्षेत्रों में से कम से कम 19 में मई और जून के दौरान वृद्धि हुई है, जबकि अप्रैल में सिर्फ 13 क्षेत्रों ने ही वृद्धि दर्ज की थी। वैश्विक मुद्रास्फीति में कमी और संभावित ब्याज दरों में कटौती से मांग बढ़ सकती है और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2024 में अपनी व्यापार मात्रा में वृद्धि की उम्मीद को पिछले साल के 0.3 फीसदी से बढ़ाकर तीन फीसदी कर दिया है। निर्यातकों द्वारा एक मुश्किल भरे साल के बाद इस अवसर का पूरी तरह से लाभ उठाने और इस प्रक्रिया में अधिक नौकरियां पैदा करने के लिए, केंद्र को इस क्षेत्र को पर्याप्त संसाधनों के साथ-साथ निश्चितता भी प्रदान करनी चाहिए, चाहे वह शुल्क में छूट योजना का मामला हो या फिर ब्याज समानीकरण योजना का। छोटी कंपनियों (जिन्हें केवल दो और महीनों के लिए समर्थन का वादा किया गया है) को छोड़कर, सभी निर्यातकों के लिए हाल ही में ब्याज समानीकरण योजना को खत्म करने जैसे अचानक नीतिगत बदलाव से निश्चित रूप से बचा जा सकता है।