समायोजन की वापसी पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक कसावट में रोक को और आगे जारी रखने का मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का ताजा फैसला मुद्रास्फीति को अपने नीतिगत दृष्टिकोण में सबसे आगे और इसके केन्द्र में रखने के दर निर्धारित करने वाले इस समिति के आश्वस्तकारी संकल्प को दर्शाता है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट रूप से कहा कि “अर्थव्यवस्था को अपनी क्षमता का एहसास कराने की योग्यता की दिशा में मौद्रिक नीति का सबसे अच्छा योगदान मूल्य स्थिरता को सुनिश्चित करना है”। श्री दास ने यह स्वीकार किया कि भले ही हेडलाइन मुद्रास्फीति मार्च और अप्रैल में उल्लेखनीय रूप से कम रही और यह चालू वित्त वर्ष के पहले महीने में 2022-23 की 6.7 फीसदी की औसत गति से धीमी होती हुई 4.7 फीसदी तक आ गई हो, लेकिन खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी ‘अभी भी लक्ष्य से ऊपर है और 2023-24 के लिए आरबीआई के अनुमानों के अनुसार इसे ऐसा ही बने रहने की उम्मीद है’। एमपीसी, जिसने मार्च 2024 में समाप्त होने वाले 12 महीनों के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति के औसतन 5.1 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है, वैश्विक अनिश्चितताओं के मद्देनजर मुद्रास्फीति को लक्ष्य के अनुरूप करने में जारी चुनौतियों से अवगत है।
विशेष रूप से, श्री दास ने इस मानसून के दौरान अल नीनो की स्थिति के मद्देनजर वर्षा के स्थानिक एवं अस्थायी वितरण, निरंतर जारी भू-राजनैतिक तनाव, चीनी, चावल एवं कच्चे तेल सहित अंतरराष्ट्रीय वस्तुओं की कीमतों में अनिश्चितता और वैश्विक वित्तीय बाजारों में अस्थिरता को एमपीसी के मुद्रास्फीति संबंधी अनुमानों के लिए बढ़ते जोखिमों के रूप में रेखांकित किया। आरबीआई के नीतिगत दृष्टिकोण को प्रभावित करने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण कारक इसका यह दृढ़ विश्वास है कि मूल्य और वित्तीय स्थिरता को बनाए रखने पर निरंतर ध्यान देने के बाद ‘मैक्रोइकॉनॉमिक फंडामेंटल्स’ मजबूत हुए हैं। निश्चित रूप से आरबीआई ने जब मई 2022 से अपनी मानक ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू किया है, तब से ऋण लागत में हुई बढ़ोतरी ने पिछले साल निवेश और उपभोग संबंधी गतिविधियों को धीमा कर दिया है। बैंक के ऋण संबंधी आंकड़े
यह दर्शाते हैं कि उद्योग, विशेष रूप से सूक्ष्म एवं लघु (एमएसएमई) और मध्यम स्तर के उद्यमों, को ऋण में बढ़ोतरी की रफ्तार पिछले साल काफी धीमी रही। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में अनुमानित निजी उपभोग खर्च में आया क्रमिक संकुचन भी कुछ हद तक उच्च उधार लागत का नतीजा रहा होगा। फिर भी, जैसा कि श्री दास ने जोर देकर कहा है, नीति निर्माता मुद्रास्फीति से अपनी नजरें हटाने का जोखिम नहीं मोल ले सकते। मूल्य स्थिरता आखिरकार एक सार्वजनिक कल्याण है और टिकाऊ अपस्फीति की स्थिति को हासिल करना एक अनिवार्य लक्ष्य बना रहना चाहिए। खासतौर पर, आय में बढ़ती असमानता और व्यापक पैमाने पर बेरोजगारी के बीच।
Published - June 10, 2023 10:35 am IST